यूपी में DNA की जंग: अखिलेश बनाम ब्रजेश, अब हुई पंखुड़ी पाठक की एंट्री

DNA Controversy | उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों एक बेहद असामान्य मोड़ पर खड़ी है। चुनावी मुद्दे, विकास योजनाएं या कानून व्यवस्था को पीछे छोड़ अब बहस डीएनए तक जा पहुंची है। समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच चल रही बयानबाजी अब व्यक्तिगत आरोपों और वैचारिक संघर्ष में तब्दील हो चुकी है। और इस जुबानी जंग की सबसे दिलचस्प कड़ी है—’डीएनए’।

विवाद की शुरुआत: सोशल मीडिया से सियासत के अखाड़े तक

इस विवाद की चिंगारी सोशल मीडिया से भड़की। समाजवादी पार्टी की सोशल मीडिया टीम ने उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक पर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की। पोस्ट में लिखा गया:

बात-बात पर सपा के डीएनए पर बयानबाजी करने वाले ब्रजेश पाठक जी अपना डीएनए अवश्य चेक कराएं और उसकी रिपोर्ट सोशल मीडिया पर जरूर डालें, जिससे उनका असली डीएनए पता चले। दरअसल, ब्रजेश पाठक जी का खुद का डीएनए सोनागाछी और जीबी रोड का है…

इस अभद्र भाषा पर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक भड़क गए। उन्होंने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पर:

अखिलेश जी, ये आपकी पार्टी की भाषा है? ये आपकी पार्टी का आधिकारिक हैंडल है!! किसी के दिवंगत माता-पिता के लिए शब्दों का ये चयन है? क्या आदरणीया डिंपल जी इस स्त्री विरोधी और पतित मानसिकता को स्वीकार करेंगी? सोचिएगा!!

अखिलेश यादव का जवाब: भावनात्मक अपील और वैचारिक चोट

इस पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक लंबी, विचारप्रधान पोस्ट के ज़रिए पलटवार किया। उन्होंने लिखा:

एक स्वास्थ्य मंत्री के रूप में आपसे ये अपेक्षा तो है ही कि आप समझते होंगे कि किसी के व्यक्तिगत डीएनए पर भद्दी बात करना दरअसल किसी व्यक्ति नहीं, बल्कि युगों-युगों तक पीछे जाकर उसके मूलवंश पर हमला करना है। हम यदुवंशी हैं और यदुवंश का संबंध भगवान श्रीकृष्ण से है। आपकी टिप्पणी धार्मिक रूप से भी हमें आहत करती है…

अखिलेश ने आगे आग्रह किया कि राजनीति करते-करते नैतिकता और धर्म जैसी संवेदनशील भावना को ठेस न पहुंचाई जाए। उन्होंने यह भी कहा कि डीएनए जैसे विषय पर बयान देने से पहले मर्यादा का ध्यान रखा जाए

ब्रजेश पाठक का तीखा पलटवार

ब्रजेश पाठक ने अखिलेश यादव की इस पोस्ट का जवाब बेहद चुटीले लेकिन तीखे अंदाज में दिया। उन्होंने लिखा:

आपने अपनी टीम से लंबी चौड़ी थीसिस लिखवा दी, लेकिन ध्यान नहीं दिया कि पर्चा राजनीतिक विज्ञान का था और आपने जवाब होम साइंस वाली कुंजी से टीप दिया। मैं तो आपसे सिर्फ समाजवादी पार्टी के डीएनए के बारे में पूछ रहा था…

क्या आपको डर है कि अगर डीएनए की बात आगे बढ़ी, तो अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, मुज़फ्फरनगर दंगे और राम मंदिर की कारसेवा के दौरान हुई गोलीबारी की यादें फिर से उभर आएंगी? क्या समाजवादी पार्टी का डीएनए इन सब घटनाओं से जुड़ा नहीं है?

पाठक ने अखिलेश पर ‘भटकाव’ का आरोप लगाते हुए उन्हें “अपने विगत वर्षों के व्यवहार का निष्पक्ष विश्लेषण” करने की सलाह दी।

DNA Controversy में कांग्रेस नेता पंखुड़ी पाठक की एंट्री

इस डीएनए संग्राम में तीसरी एंट्री हुई कांग्रेस नेता पंखुड़ी पाठक की। उन्होंने बीजेपी के पूरे वैचारिक इतिहास पर ही सवाल उठा डाले। सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने लिखा:

BJP वालों, तुम्हारी समस्या यह है कि तुम हमेशा इस देश के ख़िलाफ़ ही खड़े रहोगे। असल में दोष तुम्हारे DNA का है।

इसके बाद उन्होंने एक लिस्ट गिनाई जिसमें सावरकर से लेकर मोदी तक, बीजेपी के नेताओं की उन घटनाओं का जिक्र किया गया जो उन्होंने भारत विरोधी या पाकिस्तान से मेल-जोल वाली मानीं। जैसे:

  • “आजादी के वक्त सावरकर अंग्रेजों के साथ थे।”
  • “श्यामाप्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग के साथ सरकार चला रहे थे।”
  • “नवाज शरीफ के बर्थडे पर नरेंद्र मोदी लपकते हैं।”
  • “पठानकोट हमले के बाद ISI को बुलाना।”

पंखुड़ी ने पोस्ट को तीखे शब्दों में खत्म किया:

तुम बस ट्विटर पर बकलोली करने के ही लायक हो – 2 टके के नफ़रती चिंटू! वैसे मर्यादा पर ज्ञान देने वाले मीडिया के चरणचुंबक कहाँ ग़ायब हैं? इतना सन्नाटा क्यों है?

क्या कहता है इस DNA संग्राम का विश्लेषण?

  • व्यक्तिगत हमलों की बढ़ती राजनीति – पहले जाति, फिर धर्म, और अब ‘डीएनए’ को निशाना बनाना, सियासी विमर्श के स्तर को गिराता है।
  • सार्वजनिक मंचों पर भाषा की मर्यादा टूटना – चाहे वो समाजवादी पार्टी की पोस्ट हो या कांग्रेस की टिप्पणी, राजनीतिक संवाद अब भाषा की गरिमा नहीं संभाल पा रहा।
  • भविष्य की रणनीति – यह जुबानी जंग भले ही व्यक्तिगत लगे, लेकिन इसके पीछे 2024 लोकसभा चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव की बुनियादी वैचारिक लड़ाई चल रही है।

सवाल किसी का डीएनए कैसा है, इसका नहीं है। सवाल ये है कि राजनीतिक डीएनए में जनसेवा, गरिमा और जिम्मेदारी का तत्व कितना बचा है। क्या हम राजनीतिक वैचारिकता को आदर्श और नीतियों से जोड़ पाएंगे या वो अब केवल ट्वीटर की पोस्ट और तंजों में सिमटकर रह जाएगी?

राजनीति में वंश नहीं, विचार चलते हैं। लेकिन जब विचार कमजोर हों, तो नेता डीएनए की शरण में चले जाते हैं।

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