CM योगी आदित्यनाथ ने किया संभल CO का समर्थन – क्या यह सही है?

संभल के सीओ अनुज चौधरी (Sambhal CO Anuj Chaudhary) एक बार फिर अपने हालिया बयान को लेकर सुर्खियों में हैं! उन्होंने कहा कि होली साल में एक बार आती है, जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है, इसलिए हिंदू पक्ष को त्योहार मनाने देना चाहिए। इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस बयान का समर्थन किया और धार्मिक नेताओं से जुमे की नमाज के समय को समायोजित करने की सिफारिश की।

अब सवाल यह उठता है कि क्या एक पुलिस अधिकारी या मुख्यमंत्री के लिए इस तरह के बयान देना उचित है? क्या ऐसे बयानों से साम्प्रदायिक सौहार्द को ठेस पहुंच सकती है? आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।

Sambhal CO का बयान—एक नजर में विवाद

संभल के पुलिस क्षेत्राधिकारी (CO) अनुज चौधरी ने हाल ही में कहा-

“होली साल में एक बार आती है, जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है। अगर किसी को होली के रंगों से परहेज है, तो उन्हें उस दिन घर के अंदर ही रहना चाहिए।”

यह बयान प्रशासनिक निर्देश कम और व्यक्तिगत विचारधारा अधिक लग रहा था, क्योंकि उन्होंने एक समुदाय को सीधे तौर पर सलाह दी कि वे घर पर ही रहें। सवाल उठता है कि क्या एक सरकारी अधिकारी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर सकता है?

पुलिस अधिकारी की निष्पक्षता पर सवाल

संविधान के अनुसार, भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और प्रशासन को सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। पुलिस अधिकारी का मुख्य कर्तव्य कानून-व्यवस्था बनाए रखना है, न कि किसी एक समुदाय के पक्ष में बयान देना।

संभल के सीओ अनुज चौधरी के बयान को कई लोग पक्षपातपूर्ण मान रहे हैं क्योंकि उन्होंने एक धार्मिक समुदाय को दूसरे समुदाय के त्योहार के लिए घर में रहने की सलाह दी। यह बयान प्रशासनिक संतुलन से अधिक व्यक्तिगत विचारधारा को दर्शाता है, जो एक पुलिस अधिकारी के लिए उचित नहीं है। अगर शांति बनाए रखने का संदेश देना था, तो इसे बिना किसी धर्म विशेष का उल्लेख किए भी दिया जा सकता था।

क्या पुलिस अधिकारी को ऐसे बयान देने चाहिए?

पुलिस प्रशासन का सबसे पहला कर्तव्य निष्पक्षता (impartiality) होता है। संविधान के अनुसार, सरकारी अधिकारियों को अपनी व्यक्तिगत विचारधारा जनता के सामने व्यक्त करने से बचना चाहिए। खासकर ऐसे समय में जब मामला संवेदनशील हो।

CO अनुज चौधरी ने जिस तरह से होली और जुमे की नमाज को तुलनात्मक रूप में पेश किया, वह प्रशासनिक नजरिए से सही नहीं कहा जा सकता। अगर कानून-व्यवस्था को लेकर कोई समस्या थी, तो इसे संवाद (dialogue) और प्रशासनिक निर्देश (official order) के जरिए हल किया जा सकता था, न कि किसी एक समुदाय को घर में रहने की सलाह देकर।

“अनुज चौधरी का बयान आपत्तिजनक”

भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के पूर्व अधिकारी आरके विज ने भी सीओ अनुज चौधरी (CO Anuj Chaudhary) के बयान को आपत्तिजनक बताया है। उन्होंने सोशल साइट एक्स पर लिखा-

यह आपत्तिजनक कथन है। पुलिस का कर्तव्य कानून-व्यवस्था बनाए रखना है, न कि लोगों को घरों में कैद रहने की सलाह देना। भेदभाव से ग्रसित अधिकारी को ऐसी ड्यूटी से पृथक रखना बेहतर होगा।

मुख्यमंत्री का समर्थन कितना तर्कसंगत?

योगी आदित्यनाथ का यह कहना कि अधिकारी ने “पहलवान की तरह” बात की, लेकिन जो कहा वह सही है, यह सवाल खड़ा करता है कि क्या एक मुख्यमंत्री को इस तरह के बयानों को वैधता देनी चाहिए।

मुख्यमंत्री का कार्य राज्य में सभी समुदायों के प्रति निष्पक्षता बनाए रखना है। अगर वह एक अधिकारी के धार्मिक रूप से संवेदनशील बयान का समर्थन करते हैं, तो इससे प्रशासनिक संतुलन बिगड़ सकता है। हालांकि, यह भी सच है कि उन्होंने नमाज के समय में बदलाव को स्वीकारने के लिए धार्मिक नेताओं की प्रशंसा की, जिससे यह संकेत मिलता है कि सरकार तनाव कम करने के पक्ष में है।

मुख्यमंत्री का समर्थन—किसके लिए सही, किसके लिए गलत?

मुख्यमंत्री के लिए यह बयान राजनीतिक रूप से कारगर हो सकता है। उनके समर्थकों के लिए यह “साफ संदेश” हो सकता है कि सरकार हिंदू त्योहारों को प्राथमिकता दे रही है। लेकिन, अगर इसे प्रशासनिक निष्पक्षता के नजरिए से देखा जाए, तो सवाल उठता है- क्या किसी मुख्यमंत्री को अपने अधिकारी के ऐसे बयान का समर्थन करना चाहिए?

ऐसे बयानों से क्या असर पड़ सकता है?

  1. धार्मिक ध्रुवीकरण (Communal Polarization):इस तरह के बयान सामुदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकते हैं। जब प्रशासनिक अधिकारी या शीर्ष नेता किसी विशेष धर्म के प्रति झुकाव दिखाते हैं, तो इससे दूसरे समुदायों में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है।
  2. कानून-व्यवस्था पर असर: पुलिस प्रशासन को निष्पक्ष रहकर काम करना चाहिए। अगर अधिकारी इस तरह के बयान देंगे, तो सांप्रदायिक तनाव की स्थिति में उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं।
  3. राजनीतिकरण का खतरा: इस तरह के मुद्दे राजनीति का हिस्सा बन सकते हैं, जिससे समाज में विभाजन बढ़ सकता है। अगर सरकारें धर्मनिरपेक्षता की नीति अपनाएं और प्रशासन को निष्पक्ष रखें, तो समाज में शांति बनी रहेगी।

क्या बेहतर विकल्प हो सकते थे?

अगर प्रशासन को होली और जुमे की नमाज को लेकर कोई समस्या थी, तो इसका समाधान संवाद और आपसी सहमति से निकाला जा सकता था।

  • पुलिस अधिकारी को यह कहना चाहिए था कि “सभी नागरिकों से अपील है कि वे त्योहारों के दौरान शांति बनाए रखें और सभी समुदायों की भावनाओं का सम्मान करें।”
  • मुख्यमंत्री को इस तरह के विवादित बयान का समर्थन करने के बजाय समन्वय और भाईचारे की बात करनी चाहिए थी।

संभल के पुलिस अधिकारी अनुज चौधरी का बयान प्रशासनिक संतुलन के बजाय व्यक्तिगत विचारधारा को दर्शाता है, जो कि एक सरकारी अधिकारी के लिए उचित नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा इसका समर्थन करना भी सवाल खड़े करता है कि क्या सरकार धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का पालन कर रही है।

एक आदर्श लोकतंत्र में प्रशासन को निष्पक्ष रहकर काम करना चाहिए, ताकि सभी समुदायों को समान अधिकार और सम्मान मिले। होली और जुमे की नमाज का मामला संवाद और सहमति से सुलझाया जा सकता था, बजाय इसके कि एक अधिकारी या मुख्यमंत्री इस पर सार्वजनिक रूप से कोई पक्ष लें।

संभल मामले से हमें सीखना चाहिए कि प्रशासन का धर्म से अधिक कानून और निष्पक्षता के प्रति उत्तरदायी होना जरूरी है।

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