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सुप्रीम कोर्ट से अभिषेक उपाध्याय, ममता त्रिपाठी को बड़ी राहत

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पत्रकारों को गिरफ्तारी से राहत दी। जानें पूरा मामला और कोर्ट का आदेश।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के दो पत्रकारों, अभिषेक उपाध्याय और ममता त्रिपाठी, को बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया कि वह इन पत्रकारों को चार और हफ्तों तक गिरफ्तार न करे। इन पत्रकारों के खिलाफ एक लेख लिखने और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट साझा करने को लेकर चार प्राथमिकियां दर्ज की गई थीं।

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने अपने पिछले आदेश की अवधि बढ़ाते हुए कहा कि राज्य पुलिस पत्रकारों के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कदम न उठाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि इस दौरान दोनों पत्रकार उत्तर प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर दर्ज प्राथमिकियों को रद्द कराने के लिए कानूनी उपायों का सहारा ले सकते हैं।

क्या है मामला?

पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने “सामान्य प्रशासन में जातीय पहलुओं” पर एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर विशेष जाति के लोगों का वर्चस्व है। उनके इस लेख को लेकर पुलिस ने उनके खिलाफ गैर-जमानती धाराओं के तहत मामला दर्ज किया।

वहीं, पत्रकार ममता त्रिपाठी पर ‘एक्स’ पर की गई विभिन्न पोस्ट के कारण कई प्राथमिकियां दर्ज की गई थीं। इन मामलों में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप भी शामिल थे।

पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा

अभिषेक उपाध्याय के वकील ने अदालत में दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ कठोर कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग किया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि पत्रकारों को उनके पेशे के कारण राज्य की दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा मिलनी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले भी अपने आदेश में कहा था-

“लोकतांत्रिक देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित हैं।”

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि “सिर्फ इसलिए कि किसी पत्रकार का लेखन सरकार की आलोचना करता है, उसे अपराध नहीं माना जा सकता और लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं चलाया जाना चाहिए।”

मीडिया की स्वतंत्रता पर क्या है संदेश?

यह मामला भारत में पत्रकारिता की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार से सीधे जुड़ा है। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, और इस प्रकार के मामलों में अदालत का फैसला प्रेस की आज़ादी को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।

हाल के वर्षों में कई पत्रकारों पर उनके लेखन और सोशल मीडिया पोस्ट के कारण कानूनी कार्रवाइयां हुई हैं। यह मामला भी इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पत्रकारों को राहत देने के साथ-साथ उनके अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक मजबूत कदम है।

आगे की राह

अगले चार हफ्तों तक अभिषेक उपाध्याय और ममता त्रिपाठी को गिरफ्तारी से संरक्षण मिल गया है। इस दौरान वे कानूनी प्रक्रिया के तहत अपने मामलों को चुनौती दे सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस मामले में क्या कानूनी घटनाक्रम सामने आते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न केवल पत्रकारों के लिए राहत की खबर है, बल्कि यह मीडिया की स्वतंत्रता के लिए भी एक महत्वपूर्ण निर्णय है। यह दर्शाता है कि भारतीय न्यायपालिका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि, इस तरह के मामलों की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए सरकार और प्रशासन को प्रेस की आजादी का सम्मान करना चाहिए और कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग रोकने की दिशा में काम करना चाहिए।

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