do patti movie review | कैसी है काजोल और कृति सेनन की फिल्म ‘दो पत्ती’ ?

फिल्म समीक्षा: दो पत्ती
स्टार कास्ट: काजोल (विद्या ज्योति), कृति सैनन (जुड़वां बहनें सौम्या और शैली), शाहीर शेख (ध्रुव सूद)
निर्देशक: शशांक चतुर्वेदी
स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म: नेटफ्लिक्स

दो बहनों की कहानी बताने के कई तरीके हो सकते हैं, खासकर अगर वे जुड़वां हैं, और एक ही आदमी के साथ रहने के लिए एक-दूसरे से लड़ रही हैं। ‘दो पत्ती’ भी ऐसी ही जुड़वां बहनों की कहानी है, जिसे निर्माताओं ने रहस्य, रोमांच और ढेर सारे मेलोड्रामा के साथ दर्शकों को परोसने का फैसला किया।
नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म ‘दो पत्ती’ में कृति सेनन ने जुड़वां बहनों – सौम्या और शैली का किरदार निभाया है। वहीं, काजोल पुलिस अफसर के किरदार में हैं, जिसका नाम विद्या ज्योति है। अभिनेता शाहीर शेख ने अमीर व्यवसायी ध्रुव सूद का किरदार निभाया है। फिल्म की कहानी बताने लायक लगती है, लेकिन फिल्म में आगे क्या होने वाला है, इसका अनुमान लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है।

फिल्म की कहानी

फिल्म की कहानी सौम्या और शैली नाम की दो बहनों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक ही व्यक्ति, ध्रुव सूद, के प्रति आकर्षित होती हैं। कहानी की शुरुआत एक चौंका देने वाली घटना से होती है, जो दर्शकों को शुरुआत में ही बाँध लेती है। फिल्म का विषय घरेलू हिंसा पर केंद्रित है, जहाँ सौम्या एक अपमानजनक रिश्ते में फंसी हुई है, जबकि उसकी बहन शैली उसके इस रिश्ते को चुनौती देती है। विद्या ज्योति (काजोल) का किरदार इस यात्रा को आगे बढ़ाता है, जहाँ वो एक पुलिस अफसर के रूप में साैम्या के मामले में न्याय की मांग करती हैं।

‘दो पत्ती’ फिल्म समीक्षा (Do Patti Movie Review)

घरेलू हिंसा जैसे संवेदनशील विषय को कहानी में सजीवता से पेश किया गया है, जो दर्शकों के सामने कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है। मसलन- क्या पीड़ितों को बोलने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए? उन पर किसी प्रकार का दबाव डाला जाना चाहिए या उनके फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए? फिल्म इन सवालों का जवाब स्पष्ट रूप से देती है, लेकिन उसे अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इसे और अच्छे ढंग से पेश किए जाने की जरूरत महसूस होती है।

अभिनय

फिल्म में सभी कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को निभाने में अतिरिक्त प्रयास किए हैं। कृति सैनन ने सौम्या और शैली के दोहरे किरदार निभाए हैं, लेकिन कहीं-कहीं उनके अभिनय में स्वाभाविकता की कमी महसूस होती है। सौम्या के रूप में वो थोड़ी दब्बू और शैली के रूप में कुछ हद तक आत्मविश्वासपूर्ण हैं, लेकिन दोनों भूमिकाओं में उनका प्रदर्शन ज़्यादा प्रभावशाली नहीं लगता। काजोल भी विद्या ज्योति के रोल में एक ठोस और अनुभवी पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाने की कोशिश करती हैं, लेकिन कुछ जगहों पर उनका अभिनय थोड़ा ओवरएक्टिंग की सीमा को छूता हुआ लगता है।

इसके विपरीत, शाहीर शेख ने ध्रुव सूद के किरदार में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। एक धूर्त और अभद्र व्यवसायी के रूप में उनका ट्रांसफॉर्मेशन दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। उनकी भूमिका एक बहुमुखी व्यक्तित्व की है – एक तरफ वो आकर्षक प्रेमी हैं, और दूसरी ओर घरेलू हिंसा करने वाले व्यक्ति।

कोर्टरूम ड्रामा का कमजोर प्रस्तुतीकरण

फिल्म की समाप्ति एक कोर्टरूम ड्रामा के साथ होती है, जो कि कहानी को बल देने के बजाय उसे कमज़ोर कर देता है। इस भाग में न्यायिक प्रक्रिया के विवरण और तर्कों में मजबूती की कमी नजर आती है, जिससे यह सीक्वेंस सतही लगता है। यहां तक कि क्लाइमेक्स में आने वाला ट्विस्ट पूरी फिल्म को प्रभावहीन कर देता है। दर्शकों को गहराई में ले जाने के बजाय इसे जल्दबाज़ी में खत्म करने का आभास होता है।

क्या फिल्म देखने लायक है?

‘दो पत्ती’ का विषय मौजूदा दौर के लिए प्रासंगिक है, जिस पर चर्चा होनी चाहिए। फिल्म घरेलू हिंसा के पहलुओं और उससे जुड़े मानसिक संघर्ष को पेश करती है, लेकिन औसत अभिनय और कमजोर स्क्रीनप्ले के चलते यह फिल्म विषय के साथ न्याय नहीं कर पाती। फिल्म ‘थप्पड़’ और ‘पिंक’ जैसी फिल्मों की तरह गहरे संवाद और मजबूत स्क्रीनप्ले की संभावना लिए हुए थी, लेकिन इसे पूरा करने में असफल रहती है।

‘दो पत्ती’ एक विचारणीय मुद्दे पर आधारित फिल्म है जो संवेदनशीलता को छूने का प्रयास करती है, लेकिन अपना प्रभाव छोड़ने में सफल नहीं हो पाती। कहानी में कई स्थानों पर ओवरएक्टिंग और अनुमानित तत्व दर्शकों को निराश कर सकते हैं।

रेटिंग: 3/5

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