गोबर से कूलिंग? DU प्रिसिंपल के रिसर्च प्रोजेक्ट पर छिड़ी बहस

DU Cow Dung Controversy | दिल्ली यूनिवर्सिटी में इन दिनों गर्मी सिर्फ मौसम की नहीं, मिज़ाज की भी है। और इस चिलचिलाती गर्मी में अगर कोई चीज़ सुकून देने का दावा कर रही है, तो वो है- गोबर। हां, वही देसी, ऑर्गेनिक, महकदार गोबर, जो अब कॉलेज के क्लासरूम की दीवारों पर ‘कूलिंग पेंट’ बनाकर लीपा जा रहा है।

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। दावा है कि ये वीडियो दिल्ली यूनिवर्सिटी के लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. प्रत्युष वत्सला का है। इस वीडियो में प्रिंसिपल साहिबा क्लासरूम की दीवारों पर खुद अपने हाथों से गोबर लीपती नजर आ रही हैं। खंगाला गया तो पाया कि ये गोबर की लिपाई, मैडम का रिसर्च प्रोजेक्ट है। इस वीडियो के वायरल होने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी की गलियों में एक नई बहस छिड़ गई है। बहस यह नहीं कि गोबर ठंडा करता है या गर्म, बहस ये है कि प्रिंसिपल मैडम का ‘ज्ञान’ ठंडा है या राजनीति गरम।

“पारंपरिक भारतीय ज्ञान” बनाम आधुनिक अकल

डॉ. वत्सला ने वीडियो भी खुद ही शिक्षकों को भेजा। वीडियो में मैडम, दीवारों पर गोबर सजा रही हैं जैसे किसी नई दुल्हन ने घर की चौखट लिपी हो। उन्होंने बड़े आत्मविश्वास से कहा कि “प्राकृतिक मिट्टी को छूने से कोई नुकसान नहीं होता।” अब इस लाइन को सुनकर कुछ स्टूडेंट्स ने अपना गणित नोट्स फेंककर गोबर पकड़ने का मन बना लिया।

उनका प्रोजेक्ट है – “पारंपरिक भारतीय ज्ञान का उपयोग करके तापीय तनाव नियंत्रण का अध्ययन” – यानी A/C नहीं, अब C/G (Cow Dung) से कूलिंग। वाह! क्या शोध है, क्या सोच है! भारत को विश्वगुरु बनाने की ये सीधी, सुगंधित राह है।

कुलपति बोले: “पहले अपने घर और ऑफिस में लगाओ”

दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह इस इनोवेशन से इतने ‘प्रभावित’ हुए कि उन्होंने कह डाला – “अगर गोबर से ठंडक आती है, तो सबसे पहले प्रिंसिपल अपने घर और ऑफिस में लगाएं।” एकदम सही बात। खुद पे आज़मा कर देखो, फिर जनता को बेचो। यह रिसर्च नहीं, ‘कुल-विवेक’ है।

साथ ही उन्होंने यह भी पूछ डाला कि – “10 साल से प्रिंसिपल हैं, कूलर-पंखे की चिंता अब क्यों आई?” यानी अगर फंड की कोई कमी नहीं है, तो गोबर-लीपा मॉडल अपनाना ‘आवश्यकता’ नहीं बल्कि ‘राजनीतिक प्रयोग’ लगता है।

“गोबर-गणराज्य” में विरोध की गूंज

कॉलेज की हिंदी प्रोफेसर डॉ. नीलम ने तो गोबर की इस गाथा को पूरी तरह खारिज कर दिया। उनका कहना है कि कंक्रीट की दीवारों पर गोबर-मिट्टी का लेप बेअसर होता है। पुराने समय में मिट्टी के घर होते थे, अब तो मकान भी बीएचके वाले हैं और कमरे भी एलईडी वाले।

डॉ. नीलम को शक है कि ये सब किसी तीसरे कार्यकाल की तैयारी है- यानि देसी चुनावी रणनीति! अगर यही ट्रेंड चला तो अगली बार कोई प्रिंसिपल गाय चराते हुए रिसर्च प्रोजेक्ट चलाएगा कि “गाय चराने से स्टूडेंट्स में मेंटल शांति आती है।”

DUSU अध्यक्ष का चुटीला जवाब – “AC दे दो मैडम, गोबर तो हम ले आएंगे”

अब भला राजनीति में NSUI कैसे पीछे रहती? छात्र संघ अध्यक्ष रौनक खत्री ने पूरा मोर्चा संभाल लिया है। उन्होंने कहा कि “अगर गोबर से ठंडक होती है तो मैडम अपना AC मुझे दे दें।” इतना ही नहीं, खत्री ने ऐलान किया है कि वह अपने साथियों के साथ गोबर लेकर प्रिंसिपल के ऑफिस जाएंगे, ताकि दीवारें वहां भी ‘ठंडी’ हो सकें।

खत्री जी ने तो मैडम से सार्वजनिक अपील कर डाली – “AC हमें दान कर दीजिए, देसी ठंडक सबको मिलनी चाहिए!” अगर ये लाइन टीवी डिबेट में चली गई, तो “गोबर डिप्लोमेसी” नामक एक नया विषय पाठ्यक्रम में जुड़ सकता है।


अब सवाल ये है कि क्या लक्ष्मीबाई कॉलेज की दीवारें सच में ठंडी होंगी या प्रिंसिपल का राजनीतिक भविष्य गरम? एक रिसर्च का दावा है, दूसरा राजनीति का तंज और तीसरा – आम छात्रों की शंका। गोबर की लिपाई से अगर देश ठंडा हो सकता, तो शायद वैश्विक तापमान भी घट जाता। फिलहाल तो दीवारें ठंडी हैं, पर बहस गर्म है।

तो अगली बार क्लास में घुसने से पहले जूते बाहर उतारिए, हाथ जोड़िए और कहिए – जय गोबर!

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