मनमोहन सिंह ने क्यों कहा था, ‘हजार जवाबों से अच्छी है खामोशी मेरी’

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन की खबर ने पूरे देश को गमगीन कर दिया है। गुरुवार शाम स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद उन्हें दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के आपातकालीन विभाग में ले जाया गया था, जहां उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन से भारतीय राजनीति के एक युग का अंत हो गया है।

डॉ. मनमोहन सिंह, जिन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था के सुधारों का प्रमुख शिल्पकार माना जाता है, अपने शांत और धीर-गंभीर स्वभाव के लिए जाने जाते थे। उनकी खामोशी अक्सर उनके व्यक्तित्व का प्रतीक बनी रही। एक बार, संसद में विपक्ष द्वारा बार-बार निशाना बनाए जाने और कटु आलोचनाओं के बीच उन्होंने कहा था,

“हजार जवाबों से अच्छी है खामोशी मेरी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी।”

यह कथन उस समय उनके शांत और दृढ़ व्यक्तित्व का परिचायक बना, जब उन्होंने विपक्ष के हमलों का सीधे जवाब देने के बजाय अपने काम को बोलने दिया। यह वाक्य उनकी पूरी राजनीति और जीवन को बखूबी परिभाषित करता है।

खामोशी में छिपी मजबूती

डॉ. मनमोहन सिंह का यह कथन न केवल उनकी व्यावहारिकता का परिचायक है, बल्कि उनकी राजनीतिक शैली का भी प्रतिबिंब है। 1991 में वित्त मंत्री के रूप में जब उन्होंने आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई, तो उनकी आलोचना भी हुई। लेकिन उन्होंने अपनी खामोशी से जवाब दिया और परिणामस्वरूप भारत की अर्थव्यवस्था नई ऊंचाइयों पर पहुंची।

प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान कई बार उन पर विपक्ष ने सवाल उठाए। चाहे वह कोयला घोटाला हो या 2जी स्पेक्ट्रम विवाद, डॉ. सिंह ने हर बार अपनी खामोशी को ताकत बनाया। उनकी यह चुप्पी, आलोचकों के लिए एक पहेली थी और समर्थकों के लिए उनकी सहनशीलता का प्रतीक।

मनमोहन सिंहः आधुनिक भारत के शांत कर्मयोगी

डॉ. मनमोहन सिंह को अक्सर “आधुनिक भारत का शांत कर्मयोगी” कहा जाता है। उन्होंने कभी राजनीति में शोर-शराबे का सहारा नहीं लिया। जब भी देश के सामने कठिन चुनौतियां आईं, उन्होंने अपने ज्ञान और अनुभव से उनका समाधान निकाला।

2008 में वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान, उनकी नेतृत्व क्षमता और नीतियों ने भारत को उस मुश्किल दौर से उबारा। उनकी खामोशी और संयम ने यह साबित किया कि नेतृत्व केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि ठोस कार्य और परिणामों पर आधारित होता है।

आलोचनाओं के बीच अडिग व्यक्तित्व

डॉ. सिंह का राजनीतिक जीवन कई विवादों और आलोचनाओं से घिरा रहा, लेकिन उन्होंने न कभी व्यक्तिगत कटाक्ष किए और ना ही अनावश्यक विवादों में उलझे। उनके इस रवैये ने भारतीय राजनीति को एक अलग दिशा दी। उन्होंने दिखाया कि सत्ता में रहकर भी विनम्रता और मर्यादा का पालन किया जा सकता है।

उनका जाना: राजनीति का एक अध्याय समाप्त

डॉ. मनमोहन सिंह का निधन भारतीय राजनीति के उस युग का अंत है, जब शब्दों से अधिक कर्म और परिणामों का महत्व था। उनकी खामोशी और कार्यशैली हमेशा एक प्रेरणा बनी रहेगी।

जैसा कि उन्होंने खुद कहा था, “हजार जवाबों से अच्छी है खामोशी मेरी,” यह कथन उनके व्यक्तित्व और योगदान का सही सार है। भारतीय राजनीति और जनता उन्हें उनके कार्यों और उस अद्भुत खामोशी के लिए हमेशा याद रखेगी।

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