मथुरा की पवित्र धरती, जहाँ भगवान कृष्ण ने अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, वहीं एक वर्दीधारी ने अपनी मर्यादा की सारी सीमाएँ लांघ दीं। जिस वर्दी को लोगों की रक्षा करनी थी, वही वर्दी एक महिला उपनिरीक्षक के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई।
घटना मगोर्रा थाने की है। वही थाना जहाँ कानून की किताबें रखी जाती हैं, अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा जाता है और न्याय की दुहाई दी जाती है। लेकिन बुधवार की रात, कानून के इस किले में दरोगा मोहित राणा ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। नशे में चूर होकर वह उस कमरे में घुसा जहाँ महिला उपनिरीक्षक थी। पहले उसने मोबाइल में अश्लील दृश्य दिखाने की कोशिश की, और जब उसका विरोध हुआ तो अपनी दरिंदगी पर उतर आया।
महिला दरोगा के हौसले ने पहुंचाया जेल
अब आप सोच रहे होंगे कि क्या हुआ? क्या कानून की बेटी खुद की अस्मिता बचा पाई? हाँ! उसने संघर्ष किया। वह लड़ी। उसने मोहित राणा को धक्का दिया और किसी तरह खुद को बचाया। अगले दिन उसने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शैलेश कुमार पाण्डेय से शिकायत की। शिकायत क्या थी, यह तो आप समझ ही गए होंगे—वर्दी में छिपा एक दरिंदा!
मोहित राणा को जब थाने बुलाया गया, तो जनाब को लगा कि फिल्मी स्टाइल में भाग लिया जाए। ‘स्मार्ट वॉच’ और मोबाइल फेंककर सबूत नष्ट करने की कोशिश भी की। लेकिन अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के शिकंजे से बच नहीं सकता। एसपी (ग्रामीण) त्रिगुण बिसेन और सीओ आलोक सिंह ने जांच की, मामला सही पाया और दरोगा को गिरफ्तार कर लिया।
किस पर करें भरोसा?
अब सवाल यह उठता है कि ऐसे लोगों को पुलिस की वर्दी मिलती कैसे है? क्या भर्ती प्रक्रिया में कोई छेद है, या फिर सत्ता की छतरी तले ऐसे लोग फलते-फूलते हैं? मोहित राणा सात महीने से मगोर्रा थाने में था, लेकिन क्या इस दौरान उसके चरित्र की कोई पड़ताल हुई?
इन्हीं सवालों के जवाब समाज को चाहिए। और यह भी समझना होगा कि महिला पुलिसकर्मियों के लिए भी थानों की चारदीवारी सुरक्षित नहीं रह गई है। वर्दी अब डराने लगी है, सुरक्षा का अहसास नहीं देती।
लेकिन एक बात साफ है—इंसाफ जिंदा है। आरोपी जेल की सलाखों के पीछे भेजा जा चुका है, और कानून की देवी अपनी आँखें मूँदने के मूड में नहीं दिख रही। यही उम्मीद है, और यही इस घटना से निकला सबसे बड़ा सबक भी।