Modi vs Trump | जब दुनिया के दो सबसे ‘मजबूत नेता’ – एक अमेरिका का पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, और दूसरा भारत का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी – एक मंच पर हों, तो क्या होता है?
शुरुआत में गले मिलते हैं, शो करते हैं, नारे लगते हैं – “अबकी बार, ट्रंप सरकार” तक कहा जाता है।
लेकिन वक्त के साथ रिश्तों में गर्मजोशी की जगह गरमी आ जाती है। और आज हालात ऐसे हैं कि ट्रंप आए दिन भारत पर नए-नए टैक्स ठोक रहे हैं, नई-नई धमकियां दे रहे हैं!
तो सवाल ये उठता है कि गले में हाथ डालकर दोस्ती की कसमें खाने वाले ट्रंप आख़िर मोदी से अब इतना चिढ़ने क्यों लगे है? आइए, इस रिश्ते की परतें एक-एक करके खोलते हैं।
1. कश्मीर पर ‘बिचौलिए’ बनने की ख्वाहिश, मोदी जी ने फेरा पानी
साल 2019 में ट्रंप ने दुनिया के सामने दावा कर दिया कि “मोदी ने मुझसे कहा कि कश्मीर पर पाकिस्तान से बातचीत करवाओ।”
ट्रंप के इस दावे का भारत सरकार ने तुरंत खंडन किया। भारत सरकार ने दो टूक कहा कि कश्मीर दो देशों के बीच का मसला है। इस पर न कभी मध्यस्थता के लिए कहा गया और न ही कभी कहेंगे।
ट्रंप को लगा वो इतिहास रचने जा रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार ने उन्हें ऑन रिकॉर्ड झूठा बता दिया। अब सोचिए, दुनिया के सबसे ताकतवर आदमी को सार्वजनिक रूप से गलत ठहरा दिया जाए… तो मिर्ची तो लगेगी ही!
2. भारत-पाक सीज़फायर पर श्रेय लेने की कोशिश नाकाम
भारत-पाकिस्तान के बीच जब टकराव बढ़ता जा रहा था, तब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अचानक सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सनसनी फैला दी। ट्रंप ने दावा किया – “मेरे कहने पर भारत और पाकिस्तान युद्ध विराम करने पर सहमत हो गए हैं।”
भारत ने ट्रंप के इस दावे को भी खारिज कर दिया। भारत सरकार ने कहा – “युद्ध विराम दोनों देशों की DGMO मीटिंग से हुआ है, इसमें अमेरिका का कोई रोल नहीं है।”
ये दूसरा मौका था, जब ट्रंप की सार्वजनिक तौर पर किरकिरी हुई। अब अगर कोई इतनी बार जलील होगा, तो कोई भी सुपरपावर थोड़ा बुरा तो मान ही जाएगा।
3. “रूस से तेल मत लो” – मोदी बोले, “तो और कहां से लें?”
यूक्रेन जंग के दौरान अमेरिका ने अपने सहयोगियों को समझाया – रूस से तेल मत खरीदो। लेकिन मोदी सरकार ने कहा – “हमें देश चलाना है, डिस्काउंट मिलेगा तो वहीं से लेंगे!”
ट्रंप ने तेल पर भारत के रुख को सीधा दिल पर ले लिया। “अमेरिका फर्स्ट” वाले ट्रंप को जब “इंडिया फर्स्ट” सुनने को मिला, तो उन्होंने नोट कर लिया – “ये बंदा मेरी नहीं सुनता!”
4. नोबेल की आस, लेकिन मोदी ने किया नजरअंदाज
ट्रंप को लगता है कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए। इसलिए वो उम्मीद लगाए बैठे थे कि मोदी सरकार उन्हें नामित करेगी। लेकिन भारत की तरफ से न कोई प्रस्ताव आया, न कोई लिफाफा। ट्रंप की उम्मीदों पर पानी फिर गया।
सोचिए, जो आदमी खुद को इतिहास का सबसे महान डीलमेकर मानता है, अगर उसे नोबेल के लिए ‘घास’ भी न डाली जाए – तो खून तो खौलेगा ही!
5. कृषि और डेयरी सेक्टर में अमेरिका को ‘नो एंट्री’
अमेरिका चाहता था कि भारत अपने कृषि और डेयरी सेक्टर को विदेशी कंपनियों के लिए खोल दे। ट्रंप की कंपनियां यहां अपना पनीर और दूध पाउडर बेचना चाहती थीं।
लेकिन मोदी सरकार ने किसानों के हित में दो टूक जवाब दिया – “नो एंट्री!” इससे ट्रंप को ना सिर्फ बिज़नेस लॉबी से झाड़ पड़ी, बल्कि मोदी से नाराज़गी और गहरी हो गई।
6. F-35 नहीं लिया, उल्टा रूस से S-400 खरीद लिया
ट्रंप ने बहुत जोर लगाया कि भारत, अमेरिका से F-35 फाइटर जेट खरीदे। लेकिन मोदी सरकार ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। उलटा भारत ने रूस से S-400 जेट खरीदे।
यह तो सीधे-सीधे “अमेरिका के मुंह से निवाला छीनकर रूस को दे देना” जैसा था। और यह ट्रंप के लिए किसी अपमान से कम नहीं था।
7. मोदी ने ठुकराया अमेरिका का न्योता
ट्रंप ने एक बार आग्रह किया कि मोदी जी G-7 समिट के बाद सीधे अमेरिका आएं। मोदी ने विनम्रता से मना कर दिया। अब ट्रंप जैसे आदमी को अगर कोई मना कर दे, तो वो उसे दिल पर ले ही लेते हैं।
“मैंने बुलाया और ये नहीं आया?” – यही सोचकर शायद वो अब तक कुढ़े बैठे हैं।
ताज़ा उदाहरण: भारत पर ठोका 50% टैरिफ
भारत और अमेरिका के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर पहले 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया था, लेकिन इसके बाद 25 प्रतिशत और टैरिफ लगा दिया। इस तरह कुल 50 प्रतिशत टैरिफ हो गया।
अब बताइए – ये कोई दोस्ती वाली बात है? ये तो साफ इशारा है कि ट्रंप के मन में अब मोदी नहीं, ‘माल’ की चिंता है।
निचोड़: ट्रंप को मोदी से असली चिढ़ क्यों है?
सच कहें तो ट्रंप जैसे नेता को वो पसंद आता है जो उनकी बात बिना सवाल माने। मोदी वो शख्स हैं जो अपनी शर्तों पर रिश्ते निभाते हैं – चाहे सामने अमेरिका ही क्यों न हो। यही वजह है कि आज ट्रंप भारत का नाम लेते ही या तो टैक्स की धमकी देते हैं, या उलाहना सुनाते हैं।
“Howdy Modi” की मुस्कानें भले ही कैमरों में कैद हैं, लेकिन उनके पीछे की राजनीति में बहुत कुछ ‘हाउ’ और ‘व्हाई’ छुपा है। मोदी की ‘स्वाभिमानी कूटनीति’ और ट्रंप की ‘सुनो मेरी या भुगतो’ स्टाइल – जब साथ आती है, तो दोस्ती कम और रस्साकशी ज़्यादा नज़र आती है।