Sharbhat Jihad controversy | “कभी एलोपैथी को मौत का दरवाज़ा बताने वाले बाबा अब शरबत में जिहाद खोज रहे हैं। योग के नाम पर व्यापार और धर्म के नाम पर धंधा करने वाले बाबा को दिल्ली हाईकोर्ट ने वही सुनाया, जो लोकतंत्र में जरूरी है— कानून की सख़्त ज़बान।”
बाबा रामदेव को दिल्ली हाई कोर्ट की फटकार
बाबा रामदेव अब खुद अपने बोल के बोझ तले दबते नज़र आ रहे हैं। ‘शरबत जिहाद’ बोलकर जिन्होंने हमदर्द की रूह अफ्ज़ा को धार्मिक कटघरे में घसीटा, उनके बयान ने दिल्ली हाईकोर्ट को इस कदर झकझोर दिया कि न्यायमूर्ति अमित बंसल को कहना पड़ा,
“ये बयान अदालत के विवेक को झकझोरता है। यह किसी भी स्थिति में उचित नहीं है।”
बाबा रामदेव ने हाल ही में पतंजलि का गुलाब शरबत बेचने की होड़ में दावा ठोक दिया था कि रूह अफ्ज़ा की कमाई मस्जिदों और मदरसों में जाती है। बयान इतना ज़हरीला था कि अदालत को कहना पड़ा—
“This is indefensible.” यानी, “इसका कोई बचाव नहीं हो सकता।”
कोर्ट रूम की पूरी कार्यवाही जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।
क्या है Sharbhat Jihad controversy ?
बाबा रामदेव ने पतंजलि के पेय पदार्थों का प्रचार करते हुए बिना नाम लिए सौ साल से ज्यादा पुरानी कंपनी हमदर्द के सबसे ज्यादा बिकने वाले शर्बत रूहअफ़ज़ा पर जमकर निशाना साधा था। उन्होंने कहा थाः
“एक शरबत है, जिसे पीने से मदरसे, मस्जिद और इस्लाम का वर्चस्व बढ़ता है; और एक वह शरबत है, जिसे पीने से पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, विश्वविद्यालय, भारतीय शिक्षा बोर्ड और सनातन धर्म का गौरव बढ़ता है। कुछ लोग लैंड जेहाद, लव जेहाद और वोट जेहाद की तर्ज पर ही शर्बत जेहाद भी चला रहे हैं। पतंजलि के उत्पादों की बिक्री से जो पैसा आता है, उसे गुरुकुल और गौशाला बनाने में लगाया जाता है। जबकि दूसरी कंपनी शर्बत जेहाद करके आपके पैसे को सनातन विरोधी कार्यों में लगा रही है।”
पूरी खबर यहां पढ़ेंः Ramdev vs RoohAfza: शर्बत के बहाने पतंजलि का नया मार्केटिंग दांव?
धर्म के नाम पर ‘ब्रांड वॉर’ का नमक घोलने की कोशिश
बाबा रामदेव ने जब अपने ब्रांड के शरबत को मार्केट में फिट करने के लिए 125 साल से मार्केट में लोकप्रिय बने रूह अफ्ज़ा को धर्म से कनेक्ट करने की कोशिश की, तो शायद वह यह संदेश देना चाहते थे कि अब “शरबत भी अब धर्म पूछकर पीजिए?”
लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि ये सिर्फ एक प्रोडक्ट के खिलाफ विघटनकारी प्रचार नहीं, बल्कि सीधा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश है।
कोर्ट में हमदर्द की दलील
रूह अफ्ज़ा शरबत बनाने वाली कंपनी हमदर्द की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने साफ शब्दों में कोर्ट को बताया—
“ये कोई सामान्य प्रतिस्पर्धा नहीं, ये घृणा फैलाने वाला बयान है। जिस व्यक्ति के पास पहले से ही एक बड़ा उपभोक्ता आधार है, उसे दूसरों को बदनाम करने की जरूरत क्यों है?”
कैसा रहा है बाबा रामदेव का रिकॉर्ड
मार्केट में अपना प्रोडक्ट फिट करने के लिए बाबा रामदेव पहले भी इस तरह की मार्केटिंग को लेकर विवादों में रहे हैं। कोरोना काल में भी बाबा रामदेव ने भर-भर कर एलोपैथी को कोसा था। उस वक्त बाबा रामदेव ने पतंजलि के प्रोडक्ट्स को जोरशोर से प्रमोट किया था। रामदेव ने पतंजलि के प्रोडक्ट्स से कोरोना पर काबू पाने का दावा कि था। उस वक्त भी सुप्रीम कोर्ट को खुद इस मामले पर स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी पड़ी थी।
उस दौर में भी रामदेव के पतंजलि ने खूब भ्रामक विज्ञापन दिए, कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाईं, बाद में कोर्ट के दखल के बाद मजबूरन रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को माफ़ी माँगनी पड़ी थी।
अब फिर वही रवैया— पहले बेतुका बयान, फिर “मैंने नाम नहीं लिया” जैसा बचकाना बचाव।
कोर्ट का अल्टीमेटम: पेश होइए, नहीं तो सख़्त आदेश तय है
रामदेव की तरफ़ से एक प्रॉक्सी वकील हाज़िर हुए और मुख्य वकील के व्यस्त होने का बहाना लेकर पासओवर की गुज़ारिश की।
इस पर कोर्ट ने दो टूक कहा—
“मुख्य वकील दोपहर 12 बजे तक पेश हों, नहीं तो हम कड़ा आदेश पारित करेंगे।”
यानी, अब ‘शिविर’ नहीं, सच्चाई की चौपाल अदालत में लगेगी — और वहाँ सिर्फ सबूत और ज़िम्मेदारी की बोली चलेगी।
क्या ये ‘शब्द जिहाद’ था? या प्रचार की नई चाल?
सवाल बड़ा है— क्या रामदेव अब हर चीज़ को धर्म का चश्मा पहनाकर बेचना चाहते हैं?
शरबत के बहाने जिहाद का जिक्र कर देना सिर्फ एक ब्रांड के खिलाफ हमला नहीं, बल्कि देश के सामाजिक ताने-बाने पर सीधा वार है।
बाबा रामदेव को हमारी एक ही सलाह है- बाजार में मुकाबला योग से करो, जहरीले शब्दों से नहीं। वरना वो दिन दूर नहीं जब अदालतें ‘देशभक्त शरबत’ और ‘राष्ट्रविरोधी पेय’ के बीच भी फ़र्क करना शुरू कर देंगी। लेकिन शुक्र है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने आज ‘शब्दों की अशुद्धता’ पर सख्ती से अंकुश लगाया है। शायद अब बाबा को असली ध्यान— अपने बोलों पर केंद्रित करना होगा।