दिल्ली चुनाव में केजरीवाल की हार: क्या ‘मफलर मैन’ की सियासत खत्म?

जब अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने राजनीति में कदम रखा, तब वह जेब में बॉल पेन, गले में मफलर और साधारण स्वेटर पहने एक आम आदमी की छवि के साथ आए। उनके पास एक नीली वैगन आर थी, और उनकी पूरी सियासी यात्रा आम आदमी के संघर्ष को दर्शाती थी।

उन्होंने ‘आम आदमी’ शब्द को अपने राजनीतिक दल का आधार बनाया, जिसने देशभर के लोगों को आकर्षित किया।कभी गले में मफलर, हाथ में बॉल पेन और साधारण स्वेटर पहनकर ‘आम आदमी’ की राजनीति करने वाले अरविंद केजरीवाल का करिश्मा अब फीका पड़ता दिख रहा है।

जिस शख्स ने दिल्ली की राजनीति में भूचाल लाकर दो बार सत्ता पर कब्जा जमाया, वही अब अपनी ही सीट गंवा बैठे हैं। एक समय ‘ईमानदार राजनीति’ का चेहरा बने केजरीवाल को जनता ने इस बार नकार दिया है।

दिल्ली चुनाव में AAP की करारी हार ने पार्टी के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं, और खुद केजरीवाल की राजनीतिक स्थिति अब संकट में नजर आ रही है। क्या यह ‘मफलर मैन’ की राजनीति का अंत है, या फिर वह एक बार फिर वापसी कर पाएंगे?

2013 से 2024: सपनों की उड़ान और कड़वी हकीकत

2013 में बतौर सामाजिक कार्यकर्ता राजनीति में आने वाले केजरीवाल ने एक स्थापित पार्टी में शामिल होने के बजाय अपनी खुद की पार्टी बनाई। देखते ही देखते ‘आम आदमी पार्टी’ (AAP) दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गई और बाद में पंजाब में भी सरकार बना ली। लेकिन अब, लगभग 12 साल बाद, उनका अखिल भारतीय राजनीति का सपना बिखरता नजर आ रहा है।

2024 का दिल्ली विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। 10 साल तक दिल्ली की सत्ता में रहने के बावजूद, AAP को इस बार सिर्फ 22 सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी ने 48 सीटें जीतकर करारा झटका दिया।

Arvind Kejriwal की व्यक्तिगत हार: सीट भी नहीं बचा पाए

इस चुनाव में सबसे बड़ा झटका खुद अरविंद केजरीवाल को लगा, जब वह अपनी नयी दिल्ली सीट भाजपा के प्रवेश वर्मा से हार गए। उनकी इस हार ने न सिर्फ पार्टी के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए, बल्कि खुद केजरीवाल की राजनीतिक संभावनाओं पर भी संकट ला दिया।

राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ते क़दम, लेकिन उम्मीदों पर पानी

AAP ने दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाकर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की कोशिश की, लेकिन नतीजे उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहे। पंजाब में पार्टी की पकड़ बरकरार है और दिल्ली-पंजाब मिलाकर AAP के पास कुल 13 सांसद हैं, जिनमें से 7 पंजाब से, 3 दिल्ली से राज्यसभा सदस्य और 3 लोकसभा सदस्य हैं। मगर इसके बावजूद पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव सीमित ही रहा है।

केजरीवाल की राजनीतिक यात्रा: संघर्ष से सत्ता तक

आईआईटी-खड़गपुर से इंजीनियरिंग करने के बाद केजरीवाल ने भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में नौकरी की, लेकिन साल 2000 में उन्होंने इसे छोड़कर सामाजिक कार्यों में कदम रखा। 2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। उसी आंदोलन की नींव पर उन्होंने 2013 में कांग्रेस की मजबूत नेता शीला दीक्षित को हराकर पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।

लेकिन यह कार्यकाल महज 49 दिनों का रहा। फरवरी 2014 में उन्होंने जन लोकपाल बिल पास न होने के कारण इस्तीफा दे दिया, जिससे उनकी ईमानदार छवि और मजबूत हुई। फिर 2015 में AAP ने 70 में से 67 सीटें जीतकर धमाकेदार वापसी की। 2020 में भी पार्टी ने 62 सीटें जीतीं, लेकिन 2024 में उनकी लोकप्रियता में भारी गिरावट देखने को मिली।

घोटाले और जेल: ईमानदारी की कसौटी पर सवाल

केजरीवाल की राजनीति हमेशा भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के इर्द-गिर्द घूमती रही, लेकिन 2024 में आबकारी नीति घोटाले में फंसने के बाद उनके लिए हालात बदल गए। जब वह जेल गए, तब उन्होंने दावा किया कि दिल्ली की जनता विधानसभा चुनाव में उन्हें “ईमानदारी का प्रमाण पत्र” देगी, लेकिन नतीजों ने उनकी यह उम्मीदें तोड़ दीं।

क्या यह केजरीवाल युग का अंत है?

भले ही दिल्ली चुनाव में हार के बाद केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हों, लेकिन उनकी पार्टी अभी भी पंजाब में मजबूत स्थिति में है। राजनीति में वापसी संभव है, लेकिन यह तय है कि अब उनके लिए राह पहले जितनी आसान नहीं रही।

AAP के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती अपनी विश्वसनीयता और जनाधार को बचाने की होगी। क्या केजरीवाल दोबारा अपनी राजनीतिक ताकत वापस ला पाएंगे, या फिर यह उनकी राजनीति का पतनकाल है? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

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