सोनम वांगचुक को लेकर गरमाई सियासत, केजरीवाल ने सरकार को घेरा

लद्दाख में हालिया हिंसा और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के खिलाफ केंद्र सरकार की कार्रवाई को लेकर अब राजनीतिक बयानबाज़ी तेज हो गई है। आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को एक तीखा ट्वीट करते हुए केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोला।

केजरीवाल ने लिखा—

“सोनम वांगचुक के बारे में ये पढ़िए। जो व्यक्ति देश के बारे में सोचता है, शिक्षा के बारे में सोचता है, नए नए आविष्कार करता है, उसको आज केंद्र सरकार का पूरा तंत्र बेहद घटिया राजनीति के तहत प्रताड़ित कर रहा है। बेहद दुख होता है—देश की बागडोर कैसे लोगों के हाथ में है। ऐसे देश कैसे तरक्की करेगा?”

क्यों विवादों में घिरे हैं सोनम वांगचुक?

जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक ने हाल के महीनों में लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची में शामिल करने और भूमि व नौकरियों की सुरक्षा जैसी मांगों को लेकर आंदोलन चलाया है।

उनका आरोप है कि 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद लद्दाख की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय पहचान खतरे में पड़ गई है।

हालांकि, बीते दिनों लद्दाख के लेह में हिंसक झड़पों के बाद केंद्र सरकार ने वांगचुक को निशाने पर लिया है। सरकार का दावा है कि यह हिंसा बाहरी ताक़तों और विदेशी नागरिकों की साज़िश का नतीजा थी।

हिंसा और विदेशी साज़िश के आरोप

  • लेह में चार लोगों की मौत और कई घायल हुए थे।
  • पुलिस ने दावा किया कि मौके पर 20 से अधिक नेपाली नागरिक मौजूद थे, जिनमें से कई ने सुरक्षाबलों पर हमला भी किया।
  • 60 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है।
  • केंद्र का आरोप है कि आंदोलन को विदेश से फंडिंग और समर्थन मिला।

FCRA लाइसेंस रद्द

गृह मंत्रालय ने गुरुवार को SECMOL (Students’ Educational and Cultural Movement of Ladakh) का एफसीआरए लाइसेंस तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया। यह संस्था वांगचुक द्वारा स्थापित की गई थी।
सरकार का आरोप है कि संस्था को स्वीडन से मिले फंड “राष्ट्रीय हित” के खिलाफ इस्तेमाल किए गए।

सोनम वांगचुक की सफाई

सोनम वांगचुक का कहना है कि उनका आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण है और वे हिंसा भड़काने के आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं। उन्होंने NDTV से बातचीत में कहा:

“मैं गिरफ़्तार होने के लिए तैयार हूँ। अगर देश और लद्दाख के भविष्य के लिए जेल भी जाना पड़े तो मुझे खुशी होगी। लेकिन यह स्पष्ट है कि मेरा आंदोलन पूरी तरह अहिंसक रहा है।”

वांगचुक के समर्थन में उतरे केजरीवाल

केजरीवाल का यह ट्वीट ऐसे समय आया है जब विपक्ष लगातार सरकार पर आंदोलनकारियों को दबाने और लोकतांत्रिक आवाज़ों को कुचलने का आरोप लगा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सोनम वांगचुक की लोकप्रियता और अंतरराष्ट्रीय पहचान को देखते हुए उनका नाम राजनीति में आना केंद्र सरकार के लिए चुनौती बन सकता है।

कौन हैं सोनम वांगचुक?

सोनम वांगचुक लद्दाख के प्रख्यात शिक्षा सुधारक, जलवायु कार्यकर्ता और नवाचारक हैं। शिक्षा से मैकेनिकल इंजीनियर वांगचुक पिछले तीन दशकों से अधिक समय से लद्दाख की शिक्षा व्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास पर काम कर रहे हैं।

शिक्षा और SECMOL की स्थापना

  • 1988 में उन्होंने SECMOL (Students’ Educational and Cultural Movement of Ladakh) की स्थापना की।
  • इसका उद्देश्य लद्दाख की सरकारी स्कूल प्रणाली में सुधार लाना था।
  • उन्होंने ऑपरेशन न्यू होप में अहम भूमिका निभाई, जिसके जरिए सरकारी स्कूलों की पढ़ाई और परिणाम बेहतर हुए।
  • परीक्षाओं में असफल रहे छात्रों के लिए वांगचुक ने लेह के पास SECMOL अल्टरनेटिव स्कूल कैंपस की स्थापना की।

पुरस्कार और मान्यता

  • 2018 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • उन्हें शिक्षा सुधार और दूरदराज़ इलाकों में टिकाऊ विकास के मॉडल बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।

पर्यावरण और नवाचार

  • उन्होंने सौर ऊर्जा से गर्म होने वाली कम लागत वाली इमारतें डिज़ाइन कीं, जो मिट्टी से बनी होती हैं और -15°C ठंड में भी अंदर +15°C तापमान बनाए रखती हैं।
  • जल संकट से निपटने के लिए उन्होंने कृत्रिम हिमनद “आइस स्तूप” का आविष्कार किया।
  • इसमें सर्दियों में बर्बाद हो रहे जल को विशाल बर्फ के स्तूप के रूप में संग्रहित किया जाता है।
  • वसंत में यह पानी किसानों के काम आता है।

राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण

  • वांगचुक ने हमेशा लद्दाख की सांस्कृतिक पहचान, भूमि और पर्यावरण की सुरक्षा पर ज़ोर दिया है।
  • वे जलवायु परिवर्तन और हिमालयी पारिस्थितिकी की रक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज़ उठाते रहे हैं।
  • उन्होंने कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने का समर्थन किया था।

लद्दाख का यह आंदोलन अब सिर्फ़ स्थानीय मांगों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी चर्चा का विषय बन गया है।
केंद्र सरकार इसे विदेशी साज़िश मान रही है, जबकि विपक्ष इसे जनता की असली आवाज़ और सरकार द्वारा असहमति की आवाज़ों को दबाने का मामला बता रहा है।

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