चंडीगढ़ का इतिहास: पंजाब के दिल से निकला और विवादों में घिरा शहर

Chandigarh History in Hindi | चंडीगढ़- एक शहर, जो प्लानिंग की मिसाल भी है और राजनीति की तकरार का प्रतीक भी। भारत के नक्शे पर शायद ही कोई ऐसा शहर हो, जिसका जन्म ही विवाद की मिट्टी से हुआ हो और जिसकी पहचान आज भी दो राज्यों की खींचतान के बीच उलझी खड़ी हो। पंजाब की राजधानी, हरियाणा की भी राजधानी, और केंद्र का नियंत्रण- यह तिकोना समीकरण न सिर्फ अनूठा है, बल्कि लगातार विवादों की वजह भी बनता रहा है।

आज जब पंजाब सरकार और केंद्र के बीच चंडीगढ़ के “अधिकार” को लेकर फिर से तनातनी बढ़ गई है, ऐसे समय में इस शहर का इतिहास समझना बेहद जरूरी हो जाता है। आखिर यह शहर पंजाब से निकला कैसे? खींचतान कब शुरू हुई? और यह विवाद आज भी क्यों शांत नहीं होता?

आइए इसे गहराई से समझते हैं।

चंडीगढ़ की नींव: विभाजन की राख से उभरा एक सपनों का शहर

1947 में जब देश का विभाजन हुआ, तब लाहौर, जो पंजाब की ऐतिहासिक राजधानी थी, पाकिस्तान चला गया। नए-नवेले भारत के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई कि अब पंजाब की नई राजधानी कहां बनाई जाए।

पंडित जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन नेतृत्व ने एक आधुनिक, योजनाबद्ध और भविष्यवादी शहर की कल्पना की। इसी से जन्म हुआ चंडीगढ़ का विचार।शहर का मास्टर प्लान स्विस-फ्रेंच आर्किटेक्ट ले कॉर्बुज़िए ने तैयार किया था, जो पोलैंड के आर्किटेक्ट माचिए नोविश्की और अमेरिकी योजनाकार अल्बर्ट मेयर द्वारा बनाई गई शुरुआती योजनाओं पर आधारित था।

शहर की अधिकांश सरकारी इमारतों और आवासीय ढांचों को ले कॉर्बुज़िए के नेतृत्व में काम करने वाली टीम ने डिजाइन किया था, जिसमें ब्रिटिश आर्किटेक्ट डेम जेन ड्रू और मैक्सवेल फ्राई भी शामिल थे।

चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स, जो ले कॉर्बुज़िए की वैश्विक वास्तुकला श्रृंखला का एक हिस्सा है, को जुलाई 2016 में यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के 40वें सत्र के दौरान वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया।

1950 के दशक में स्विस-फ्रेंच आर्किटेक्ट ले कॉर्बुज़िए और भारतीय वास्तुकारों की एक टीम ने मिलकर इस शहर को डिजाइन किया- ग्रिड प्लान, सेक्टर्स, ग्रीन बेल्ट्स और एक ऐसी शहरी सोच, जो आज भी दुनिया के प्लान्ड सिटीज़ में “गोल्ड स्टैंडर्ड” मानी जाती है।

1953 में चंडीगढ़ को पंजाब की नई राजधानी बना दिया गया।

यानी यह शहर जन्म से ही पंजाब का था—भावनात्मक और प्रशासनिक दोनों रूप से।

1966: एक तारीख, जिसने विवाद को जन्म दिया

1966 में भाषा के आधार पर जब हरियाणा का गठन हुआ, तो एक नया संकट सामने आया- पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ किसके पास जाए? उस समय केंद्र ने एक “अस्थायी व्यवस्था” बनाई:

  • चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश रहेगा
  • पंजाब और हरियाणा- दोनों की राजधानी के रूप में काम करेगा
  • और सबसे अहम- चंडीगढ़ भविष्य में पंजाब को दिया जाएगा, इसके बदले हरियाणा को “समान मूल्य की” जमीन दी जाएगी

पर यह “अस्थायी व्यवस्था” आज तक स्थायी विवाद बनकर खड़ी है।

पंजाब का दावा: भावनात्मक और ऐतिहासिक दोनों

पंजाब का दावा बेहद स्पष्ट है—

  • चंडीगढ़ पंजाब की भूमि पर बसाया गया
  • इसकी भाषा, संस्कृति और जनसंख्या मूलतः पंजाबी रही
  • 1966 का वादा आज तक अधूरा है
  • राजधानी के बिना किसी राज्य की प्रशासनिक पहचान अधूरी रहती है

पंजाब कई बार कह चुका है कि चंडीगढ़ सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि पंजाब की ऐतिहासिक निरंतरता का प्रतीक है।

हरियाणा का पक्ष: समान अधिकार की मांग

हरियाणा यह कहता है:

  • अगर पंजाब का विभाजन हुआ तो राजधानी का भी न्यायपूर्ण विभाजन होना चाहिए
  • हरियाणा की अपनी भी प्रशासनिक जरूरतें हैं
  • चंडीगढ़ में हरियाणा के सरकारी दफ्तर, कर्मचारी और सचिवालय हैं
  • केंद्र की व्यवस्था पहले से “संतुलित” है

हरियाणा आज भी चंडीगढ़ पर “समान हिस्सेदारी” का दावा करता है।

केंद्र की भूमिका: संतुलन या उलझन?

केंद्र लगातार यह कहता आया है कि चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश के रूप में ही बेहतर प्रबंधित हो सकता है। प्रशासन, कानून व्यवस्था और संस्थानों की जिम्मेदारी देखते हुए यह मॉडल व्यावहारिक है।

लेकिन हर बार जब कोई राजनीतिक दल पंजाब में सत्ता में आता है, यह विवाद फिर गर्म हो जाता है—और केंद्र पर पंजाब को “वादा पूरा करने” का दबाव बढ़ जाता है।

2020 के बाद विवाद क्यों बढ़ा?

पिछले कुछ वर्षों में तनाव तेजी से बढ़ा है:

  • कर्मचारियों की सेवा नियमावली बदलने पर पंजाब ने नाराजगी जताई
  • चंडीगढ़ में प्रशासनिक फैसलों में केंद्र के दखल को लेकर पंजाब सरकारों ने बार-बार आपत्ति दर्ज कराई
  • किसानों के आंदोलन के बाद पंजाब-केंद्र संबंध और तनावपूर्ण हुए
  • अब पंजाब सरकार बार-बार खुले मंच से कहने लगी है—
    “चंडीगढ़ हमारा है, इसे हमें ही सौंपना होगा”

इन सबके बीच हरियाणा भी बराबरी से मुखर हो गया है।

क्या यह विवाद कभी खत्म होगा?

विशेषज्ञों के मुताबिक समाधान के तीन संभावित रास्ते हैं:

  1. चंडीगढ़ पंजाब को सौंपा जाएः जैसा कि 1966 की घोषणा में कहा गया था। पर इससे हरियाणा असंतुष्ट होगा और नई राजनीतिक आग भड़केगी।
  2. चंडीगढ़ को स्थायी तौर पर केंद्र के पास रखा जाए। मौजूदा व्यवस्था जारी रहे पर पंजाब का असंतोष हमेशा बना रहेगा।
  3. हरियाणा को नई राजधानी बनाकर “वास्तविक समाधान” किया जाए। कई बार गुरुग्राम, करनाल और पंचकूला के नाम आए लेकिन राजनीतिक सहमति अभी तक संभव नहीं हुई।

तीनों विकल्पों में राजनीतिक जोखिम है—इसलिए फाइल आज भी “अधूरे वादों” की अलमारी में पड़ी है।

चंडीगढ़—एक शहर नहीं, बल्कि भावनाओं, इतिहास और राजनीति का संगम

चंडीगढ़ सिर्फ कंक्रीट और सेक्टरों का शहर नहीं है— यह पंजाब के दिल से निकला सपना है, हरियाणा की बराबरी की मांग का प्रतीक है, और केंद्र की राजनीतिक संतुलनकारी भूमिका की परीक्षा भी।

70 साल बाद भी चंडीगढ़ की कहानी अधूरी है। हर नई सरकार, हर नया विवाद, हर नई घोषणा—इस शहर को फिर से इतिहास के चौराहे पर खड़ा कर देती है।

और एक सवाल हमेशा वहीं खड़ा रहता है—
चंडीगढ़ किसका है?

जवाब शायद किसी दस्तावेज़ में नहीं, बल्कि उस राजनीतिक इच्छा शक्ति में छिपा है, जो अभी तक पैदा नहीं हुई।

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