Delhi Earthquake reason | राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में महसूस किए गए भूकंप के झटके वैज्ञानिकों के अनुसार भूगर्भीय विशेषताओं में स्वाभाविक बदलाव का परिणाम थे, न कि प्लेट टेक्टोनिक्स की हलचल का। इस हल्के लेकिन प्रभावी भूकंप ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से कितने संवेदनशील हैं।
Delhi Earthquake का केंद्र और प्रभाव
भूकंप विज्ञानियों के अनुसार, इस झटके का केंद्र दक्षिणी दिल्ली के धौला कुआं क्षेत्र के झील पार्क में पांच किलोमीटर की गहराई में स्थित था। यह भूकंप रिक्टर स्केल पर चार तीव्रता का था, जिसकी वजह से झटके अपेक्षाकृत अधिक महसूस किए गए। कुछ स्थानीय लोगों ने दावा किया कि झटकों के साथ उन्होंने तेज़ आवाज़ें भी सुनीं, जिससे लोगों में कुछ देर के लिए दहशत फैल गई। हालाँकि, किसी बड़े नुकसान की सूचना नहीं मिली।
राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS) के निदेशक डॉ. ओ.पी. मिश्रा ने बताया कि दिल्ली-एनसीआर भूकंप संभावित क्षेत्र में आता है, जहां हिमालयी भूकंपों का प्रभाव महसूस किया जाता है। दिल्ली को भूकंपीय क्षेत्र-4 में रखा गया है, जो देश के सबसे संवेदनशील भूकंपीय क्षेत्रों में से एक है।
क्या कहते हैं भूकंप विज्ञान के आंकड़े?
डॉ. मिश्रा के अनुसार, दिल्ली और आसपास के इलाकों में पहले भी भूकंप दर्ज किए गए हैं। 2007 में इसी क्षेत्र में 4.6 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया था, लेकिन वह 10 किलोमीटर की गहराई पर केंद्रित था, जिससे उसका प्रभाव कम महसूस किया गया।
इतिहास में झाँकें तो दिल्ली और उत्तर भारत में कई बड़े भूकंप आए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- 1720 – दिल्ली में 6.5 तीव्रता का भूकंप
- 1803 – गढ़वाल में 7.5 तीव्रता का भूकंप
- 1842 – मथुरा में 5.0 तीव्रता का भूकंप
- 1956 – बुलंदशहर में 6.7 तीव्रता का भूकंप
- 1966 – मुरादाबाद में 5.8 तीव्रता का भूकंप
- 1991 – उत्तरकाशी में 6.8 तीव्रता का भूकंप
- 1999 – चमोली में 6.6 तीव्रता का भूकंप
- 2015 – नेपाल के गोरखा क्षेत्र में 7.8 तीव्रता का भूकंप
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि उत्तर भारत विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर भूकंप के प्रति संवेदनशील क्षेत्र हैं, जहाँ भूकंपीय गतिविधियाँ निरंतर जारी रहती हैं।
दिल्ली में भूकंप क्यों आते हैं?
वैज्ञानिकों का कहना है कि दिल्ली में आने वाले अधिकतर भूकंप हिमालयी क्षेत्र की टेक्टोनिक गतिविधियों से प्रभावित होते हैं। हालाँकि, सोमवार को आए भूकंप की स्थिति अलग थी। डॉ. मिश्रा ने स्पष्ट किया कि यह भूकंप प्लेट टेक्टोनिक्स के कारण नहीं बल्कि भूगर्भीय विशेषताओं में प्राकृतिक बदलावों के चलते आया था।
उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र में पहले भी भूकंप आ चुके हैं, लेकिन इस बार झटका सतह के करीब था, इसलिए ज्यादा महसूस हुआ। भूगर्भीय संरचना में होने वाले प्राकृतिक बदलाव कभी-कभी स्थानीय स्तर पर भूकंपीय हलचल को जन्म दे सकते हैं।”
क्या दिल्ली को चिंता करनी चाहिए?
दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र मध्यम से उच्च जोखिम वाले भूकंपीय क्षेत्र में आता है, इसलिए किसी भी हलचल को हल्के में नहीं लिया जा सकता। भले ही सोमवार का भूकंप मामूली था, लेकिन यह एक संकेत है कि भविष्य में बड़े भूकंप की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली की बढ़ती आबादी और गगनचुंबी इमारतों के कारण सुरक्षा उपायों को और अधिक सख्त किया जाना चाहिए। भूकंपरोधी इमारतों का निर्माण, पुराने निर्माणों का मजबूतीकरण और आपदा प्रबंधन योजनाओं को लागू करना आवश्यक है।
दिल्ली में सोमवार को आया भूकंप एक स्वाभाविक भूगर्भीय प्रक्रिया का हिस्सा था। वैज्ञानिक इसे गंभीर चेतावनी भले ही न मानें, लेकिन इसे हल्के में लेना भी सही नहीं होगा। सरकार और नागरिकों को मिलकर भूकंप से बचाव के उपाय अपनाने होंगे, ताकि भविष्य में किसी बड़े खतरे से बचा जा सके।
दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में भूकंप के प्रति जागरूकता बढ़ाना, सुरक्षा मानकों का पालन करना और सतर्क रहना ही एकमात्र उपाय है जिससे हम इस प्राकृतिक आपदा से निपट सकते हैं।