दिल्ली चुनाव में AI की एंट्री, क्यों खतरनाक हो सकता है ये ट्रेंड?

दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच मुकाबला हमेशा से तीखा रहा है। लेकिन हालिया विधानसभा चुनावों में यह प्रतिस्पर्धा एक नई दिशा में चली गई है, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हथियार बनकर उभर रहा है। राजनीतिक दल AI का इस्तेमाल न केवल अपने प्रचार को मजबूत करने के लिए कर रहे हैं, बल्कि विरोधियों को कमजोर दिखाने और जनता को प्रभावित करने के लिए भी।

दिल्ली चुनाव में AI की एंट्री

AI तकनीक के माध्यम से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रचार और विमर्श को प्रभावित करने की यह शुरुआत तब हुई जब गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान को लेकर विवाद खड़ा हुआ। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर पर दिए गए इस बयान को आम आदमी पार्टी ने एक अवसर के रूप में लिया।

AAP ने सोशल मीडिया पर AI-जनरेटेड वीडियो जारी किया, जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बाबा साहेब से आशीर्वाद मांगते हुए दिखाया गया। यह वीडियो न केवल तेजी से वायरल हुआ बल्कि भावनात्मक मुद्दों को भुनाने का एक माध्यम भी बन गया।

इसके जवाब में BJP की IT सेल ने एक **छेड़छाड़ वाला AI वीडियो** शेयर किया। इस वीडियो में बाबा साहेब केजरीवाल को आशीर्वाद देने की बजाय उन्हें पीटते हुए नजर आते हैं। यह वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ और चुनावी बहस को और गर्मा दिया।

केजरीवाल का सांता क्लॉज अवतार

क्रिसमस के मौके पर AAP ने एक और AI-जनरेटेड वीडियो जारी किया, जिसमें अरविंद केजरीवाल को सांता क्लॉज के रूप में दिखाया गया। वीडियो में केजरीवाल महिलाओं को गिफ्ट के तौर पर 2100 रुपये बांटते नजर आते हैं। यह वीडियो भी बड़े पैमाने पर साझा किया गया, जो सीधे तौर पर महिलाओं को पार्टी की योजनाओं और वादों की ओर आकर्षित करने के लिए तैयार किया गया था।

https://twitter.com/AamAadmiParty/status/1871779894444834819

AI का दुरुपयोग और लोकतंत्र पर खतरा

AI के उपयोग ने राजनीतिक प्रचार को नई ऊंचाईयों तक पहुंचा दिया है, लेकिन इसके दुरुपयोग ने गंभीर चिंताएं भी पैदा की हैं।

  1. गलत जानकारी फैलाने का माध्यमः AI की मदद से बनाए गए वीडियो और छवियां अक्सर वास्तविकता से दूर होती हैं। ये प्रचार का एक ऐसा रूप बन गए हैं, जहां तथ्यों की बजाय भावनाओं को प्राथमिकता दी जाती है। AAP और BJP के इन वीडियो में यही देखा गया, जहां दोनों दलों ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए AI का सहारा लिया।
  2. जनता की भावनाओं से खेलः AI-जनरेटेड वीडियो लोगों की भावनाओं को भड़काने में सक्षम हैं। आंबेडकर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बनाए गए वीडियो इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे राजनीतिक दल AI का उपयोग कर भावनात्मक मुद्दों को उभार रहे हैं।
  3. प्रचार का असमान युद्धक्षेत्रः AI तकनीक महंगी और तकनीकी रूप से जटिल है। इसलिए, छोटे दल और स्वतंत्र उम्मीदवार इस दौड़ में पीछे रह जाते हैं। यह तकनीक केवल बड़े और संसाधन संपन्न दलों के हाथ में सिमट जाती है, जो चुनावी प्रक्रिया में असंतुलन पैदा कर सकती है।
  4. विश्वास की हानिः AI के माध्यम से छेड़छाड़ किए गए वीडियो और छवियां जनता के बीच भ्रम और अविश्वास पैदा कर सकती हैं। जब वास्तविकता और कल्पना के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है, तो लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांत कमजोर पड़ सकते हैं।

AI दुरुपयोग को रोकने के उपाय

  1. सख्त नियम और कानून: चुनाव आयोग और अन्य नियामक एजेंसियों को AI के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए सख्त नियम बनाने चाहिए।
  2. जनता को जागरूक करना: मतदाताओं को फर्जी और AI-जनरेटेड सामग्री की पहचान करने के लिए शिक्षित किया जाना चाहिए।
  3. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जिम्मेदारी: फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स को AI-जनरेटेड सामग्री की निगरानी और रोकथाम में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
  4. तकनीकी समाधान: AI का दुरुपयोग रोकने के लिए AI का ही उपयोग करना चाहिए। फेक वीडियो और तस्वीरों की पहचान करने वाली तकनीक विकसित की जानी चाहिए।

दिल्ली चुनाव में AI का बढ़ता उपयोग और दुरुपयोग लोकतंत्र के लिए एक नई चुनौती बनकर उभरा है। जहां यह तकनीक राजनीतिक संवाद को अधिक प्रभावी बना सकती है, वहीं इसका गलत इस्तेमाल जनता को गुमराह करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने का काम कर सकता है।

राजनीतिक दलों को यह समझने की आवश्यकता है कि AI का उपयोग जनता के विश्वास को जीतने और सकारात्मक संवाद स्थापित करने के लिए किया जाना चाहिए, न कि विरोधियों को बदनाम करने और गलत जानकारी फैलाने के लिए। यदि AI का दुरुपयोग इसी तरह जारी रहा, तो यह केवल चुनाव प्रक्रिया को ही नहीं, बल्कि पूरे लोकतांत्रिक तंत्र को कमजोर कर सकता है।

आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि नियामक संस्थाएं और जनता इस चुनौती का सामना कैसे करती हैं। AI तकनीक का उपयोग लोकतंत्र को सशक्त करने के लिए होना चाहिए, न कि उसे कमजोर करने के लिए।

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