“भाई, माफ करना…” — रामनवमी पर चोर ने छोड़ा माफीनामा

जगहः मध्य प्रदेश का खरगोन। रामनवमी की रात। एक दुकान। और एक बैग में रखे 2.84 लाख रुपये।

ये किस्सा एक चोरी का है लेकिन यह कोई आम चोरी नहीं थी। यह कहानी है एक ऐसे इंसान की, जो टूट चुका था—सिर्फ कर्ज़ से नहीं, हालात से। उसने चोरी की, पर छोड़ गया एक ‘पत्र’। ऐसा पत्र जो पुलिस के सबूत से कहीं ज्यादा, एक इंसानी हालत की रिपोर्ट था।

‘भाई, मुझे माफ करना…’

मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के जमींदार मोहल्ला में जुजर अली बोहरा की दुकान में रामनवमी की रात एक शख्स घुसा। बैग में रखे थे कुल 2.84 लाख रुपये। पर वो सब नहीं ले गया। उसने उठाए सिर्फ 2.45 लाख और बाकी 38,000 रुपये बैग में ही छोड़ दिए। जाते-जाते उसने टाइप किया हुआ एक पत्र दुकान में रख छोड़ा—जिसमें लिखा था:

“मैं पड़ोस में ही रहता हूँ, मुझ पर बहुत कर्ज़ है। लेनदार हर रोज तकादा करते हैं। मैं ये करना नहीं चाहता था, पर कोई रास्ता नहीं बचा था। मुझे माफ कर देना भाई।”

चोरी से ज्यादा भारी वो चिट्ठी थी

पत्र में जो शब्द थे, वो सिर्फ़ भावनाओं की बौछार नहीं थे। वो उस सच्चाई की चीख थी, जो आंकड़ों में नहीं गूंजती। उसने लिखा:

“अभी मेरे लिए पैसे चुराना बहुत ज़रूरी है। मैंने सिर्फ वही लिया है जो मेरी जरूरत थी, बाकी पैसे बैग में छोड़ दिए हैं। छह महीने के अंदर पैसे लौटा दूंगा। आप चाहें तो मुझे पुलिस को सौंप दीजिए।”

सुनिए, ये वही वाक्य हैं जो एक अपराधी से नहीं, एक डूबते इंसान से निकले हैं।

पुलिस भी हैरान, मामला दर्ज

कोतवाली थाना क्षेत्र के सहायक उपनिरीक्षक अरशद खान ने जानकारी दी कि यह घटना रविवार और सोमवार की दरम्यानी रात हुई। उन्होंने बताया कि चोर ने पत्र में दुकानदार को ‘भाई’ कहकर संबोधित किया और अपने कृत्य पर क्षमा मांगी। उन्होंने कहा-

“चोर ने दावा किया है कि उसे जितनी जरूरत थी, उतना ही लिया। बाकी रकम बैग में ही छोड़ दी।”

यहां सवाल चोरी का नहीं, सवाल उस सोच का है—जो हालात से लड़ते-लड़ते इस मोड़ पर आ गई।

“रामनवमी पर किया, इसके लिए और भी ज्यादा शर्मिंदा हूँ”

चोर ने पत्र में इस बात का भी जिक्र किया कि वह रामनवमी के पावन दिन पर चोरी करने के लिए शर्मिंदा है। पत्र में लिखाः

“मैं जानता हूँ कि ये पावन दिन है, और मैंने इस दिन ऐसा काम किया। लेकिन मेरा इरादा बुरा नहीं था, सिर्फ हालात खराब हैं।”

देखिए चोर की टाइप की गई चिट्ठीः

खरगोन के चोर कि चिट्ठी


क्या कानून दिल की मजबूरी को समझता है?

कानून की नज़र में यह चोरी है। लेकिन उस पत्र को पढ़ने के बाद सवाल यह उठता है—क्या कोई आदमी यूं ही एक टाइप किया हुआ पत्र छोड़ता है? क्या कोई शातिर चोर रामनवमी पर “माफ कीजिएगा भाई” लिखकर दुकान लूटता है?

इस घटना में पुलिस भी असमंजस में है। वो व्यक्ति कोई पेशेवर अपराधी नहीं लगता। ना हथियार, ना तोड़फोड़, ना हिंसा—सिर्फ एक रकम और एक ‘इमोशनल एफिडेविट’।

‘क्राइम स्टोरी’ या ‘ह्यूमन स्टोरी’?

पत्रकारिता में अक्सर हम तथ्यों के पीछे भागते हैं—कितने बजे चोरी हुई, कितनी रकम गई, कितने लोग थे। लेकिन यह कहानी उन घटनाओं से अलग है। ये कहानी उस आदमी की है जो खुद अपनी नैतिक हार का गवाह बन गया।

रामनवमी पर ‘पाप’ करने वाला वह इंसान शायद खुद को ‘पापी’ मानकर ही पत्र में गिड़गिड़ाया होगा।

छह महीने का वादा और भरोसे का इम्तिहान

अब असली कहानी शुरू होती है—क्या वो इंसान अपने वादे पर खरा उतरेगा? क्या वो छह महीने में वो रकम लौटाएगा? या फिर ये पत्र महज एक चाल थी, लोगों की भावनाओं से खेलने की?

दुकानदार, पुलिस और पूरा मोहल्ला अब उस शख्स के लौटने या न लौटने के इंतज़ार में है।

आख़िर में एक सवाल…

जब पेट और ज़मीर के बीच लड़ाई हो, तो जीत किसकी होती है?

ये कोई ‘सस्पेंस थ्रिलर’ नहीं, ये हमारे समाज की वो परछाईं है, जो कर्ज़, गरीबी और बेबसी के नीचे दब चुकी है।

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