Logout Review Hindi: देखने बैठोगे तो छोड़ नहीं पाओगे, जानिए क्यों?

Logout film review in Hindi | आज के दौर में जब हर दूसरी फिल्म या वेब सीरीज की शुरुआत चाकू, हथौड़े, खून-खराबे या जबरन ठूंसे गए सेक्स सीन से होती है, तब दर्शक एक सवाल पूछता है— क्या अब अच्छी कहानियों का दौर खत्म हो गया है?
‘पंचायत’ और ‘गुल्लक’ जैसी सीरीज के बाद दिल कुछ अच्छा देखने को तरसता है। ऐसे दौर में जब दर्शक कहानी से ज्यादा स्किप बटन पर उंगली रखने को मजबूर हो चुके हैं, वहीं ‘लॉग आउट’ एक ऐसी फिल्म बनकर सामने आती है जो दर्शक को सोचने और महसूस करने के लिए मजबूर करती है।


कहानी की बात करें तो…

फिल्म की स्क्रिप्ट बिस्वपति सरकार ने लिखी है और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है। कहानी डिजिटल एडिक्शन पर आधारित है—एक ऐसा मुद्दा जो हम सभी के जीवन से जुड़ा हुआ है, लेकिन अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।

फिल्म का नायक एक ऐसा लड़का है, जो सोशल मीडिया, फोन, स्क्रीन टाइम और वर्चुअल लाइफ की चकाचौंध में उलझ चुका है। लाइक, सब्सक्राइब, नोटिफिकेशन, और FOMO उसकी जिंदगी पर हावी हैं। लेकिन कहानी महज इस लत की आलोचना नहीं करती—यह गहराई से दिखाती है कि कैसे ये आदतें हमारे व्यवहार, रिश्तों और सोच पर असर डालती हैं।

फिल्म की खूबी यह है कि यह उपदेश नहीं देती, बल्कि आइना दिखाती है।


अमित गोलानी का निर्देशन: संवेदनशील और सधा हुआ

अमित गोलानी, जो पहले भी ‘TVF Pitchers’ और ‘Tripling’ जैसी सराहनीय वेब सीरीज़ में अपने निर्देशन का लोहा मनवा चुके हैं, इस फिल्म में भी कमाल करते हैं।
उन्होंने कहानी को इतना सच्चा और ईमानदार रखा है कि दर्शक हर फ्रेम में खुद को महसूस करता है।

डायरेक्शन की खासियत है इसकी अंडरस्टेटमेंट—ना कोई ज़्यादा मेलोड्रामा, ना बनावटी संवाद। हर सीन सहज और प्रभावशाली है। अमित गोलानी ने दिखाया है कि अच्छी फिल्में बनाने के लिए न शोर जरूरी है, न हथियार—जरूरी है सिर्फ एक सच्ची सोच।


पूजा गुप्ते की सिनेमैटोग्राफी: साधारण में भी सौंदर्य

पूजा गुप्ते की सिनेमैटोग्राफी ‘लॉग आउट’ को एक विज़ुअल डेप्थ देती है। हर फ्रेम में एक खास तरह की ईमानदारी और ठहराव है, जो फिल्म के संदेश को और गहरा बनाता है।
मोबाइल स्क्रीन की चमक, चेहरे की थकावट, कमरे की तन्हाई—हर डिटेल को उन्होंने कैमरे से खूबसूरती से कैप्चर किया है।

उन्होंने न सिर्फ विज़ुअल्स में जान डाली, बल्कि कहानी के इमोशन्स को कैमरे से उभारा है।


बाबिल खान: एक संजीदा और परिपक्व कलाकार की दस्तक

बाबिल खान इस फिल्म की आत्मा हैं। उनका किरदार एक आम युवा का है—जो फोन में डूबा है, लाइफ से कटा है, लेकिन अंदर ही अंदर टूट भी रहा है।
बाबिल ने अपने किरदार में जितनी सहजता, गहराई और परिपक्वता दिखाई है, वह उन्हें आने वाले समय के बेहतरीन एक्टर्स की कतार में खड़ा करती है।

फिल्म में आप उन्हें इमोशनली ड्रेन होते, बेसब्र होते, गुस्से में, तनाव में, और अंततः ‘जागते हुए’ देखेंगे।
हर भाव उन्होंने बखूबी निभाया है। ये परफॉर्मेंस सिर्फ एक्टिंग नहीं है—ये एक एहसास है।


फिल्म की खूबी: साइलेंस भी बोलता है

‘लॉग आउट’ में न कोई फालतू बैकग्राउंड म्यूजिक है, न जबरन डाले गए आइटम सॉन्ग। यह फिल्म अपने साइलेंस, फ्रेम्स, और संवादों से कहानी कहती है।

जो दर्शक गहराई से फिल्म देखना जानते हैं, उनके लिए यह फिल्म किसी ट्रीट से कम नहीं।


Logout फिल्म क्यों देखें?

  • अगर आप ओटीटी पर सच्चा और संवेदनशील कंटेंट तलाश रहे हैं।
  • अगर आप बिना गालियों और अश्लीलता के मनोरंजन चाहते हैं।
  • अगर आप डिजिटल युग की सच्चाई से रूबरू होना चाहते हैं।
  • अगर आप सिर्फ देखना नहीं, महसूस करना चाहते हैं।

तो ‘लॉग आउट’ आपकी वॉचलिस्ट में सबसे ऊपर होनी चाहिए।


‘लॉग आउट’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक अनुभव है। यह फिल्म उन हजारों युवाओं की कहानी है जो दिन-रात स्क्रीन से चिपके हैं, लेकिन अंदर से खाली हैं।
यह फिल्म उन माता-पिता की कहानी है जो बच्चों के साथ होते हुए भी दूर हो चुके हैं। और यह फिल्म उन रचनाकारों की उम्मीद है जो अभी भी मानते हैं कि सिनेमा का मकसद सिर्फ मनोरंजन नहीं, समाज को दिशा देना भी है।

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