सिविल सेवा परीक्षा में कथित फर्जीवाड़े के गंभीर आरोपों का सामना कर रहीं पूर्व IAS ट्रेनी पूजा खेडकर (Puja Khedkar) को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने उन्हें अंतरिम जमानत देते हुए स्पष्ट किया कि पूछताछ में सहयोग, गवाहों से दूरी और सबूतों से छेड़छाड़ न करना उनकी जमानत की प्रमुख शर्तें रहेंगी।
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने सुनवाई के दौरान तीखी टिप्पणी करते हुए कहा –
“उसने कौन सा जघन्य अपराध कर दिया है? न तो वह ड्रग माफिया है और ना ही आतंकवादी। उसने किसी का खून भी नहीं किया है। न ही वह नशे के कारोबार में है और ना ही उसने किसी का रेप किया है।”
सुप्रीम कोर्ट का आदेश –
अदालत ने पूजा खेडकर को ₹35,000 की नकद जमानत और दो जमानती प्रस्तुत करने पर ज़मानत पर रिहा करने का निर्देश दिया। आदेश में कहा गया –
“वह जांच में पूर्ण सहयोग करेंगी और अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेंगी। न तो गवाहों को प्रभावित करेंगी और न ही साक्ष्यों से छेड़छाड़ करेंगी। यदि इन शर्तों का उल्लंघन हुआ, तो जांच एजेंसी को अग्रिम ज़मानत रद्द कराने की स्वतंत्रता होगी।”
Puja Khedkar पर क्या आरोप हैं?
पूजा खेडकर पर 2022 की UPSC परीक्षा में OBC और दिव्यांग कोटे का फर्जी लाभ लेकर योग्यता हासिल करने का आरोप है। दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक षड्यंत्र से जुड़े प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने खेडकर की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि –
“यह मामला केवल एक व्यक्ति द्वारा की गई धोखाधड़ी नहीं है, बल्कि यह समाज, संविधानिक संस्थाओं और राष्ट्र के साथ भी विश्वासघात है।”
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी सख्त टिप्पणियों में कहा था कि इस पूरे मामले की तह तक पहुंचने के लिए पूछताछ जरूरी है। अदालत ने यह भी इंगित किया कि खेडकर के माता-पिता सरकारी सेवा में उच्च पदों पर हैं, जिससे प्रभावशाली व्यक्तियों की मिलीभगत की संभावना जताई गई।
सुप्रीम कोर्ट का रुख क्यों बदला?
जहां हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संतुलन के नजरिए से देखा। न्यायालय ने यह संकेत दिया कि जब तक अपराध की गंभीरता स्पष्ट रूप से हिंसात्मक या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी न हो, तब तक व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि खेडकर को जांच में पूर्ण सहयोग देना होगा, अन्यथा उनकी जमानत रद्द की जा सकती है।
आरक्षण नीति की गरिमा पर प्रश्नचिह्न
पूजा खेडकर का मामला महज एक व्यक्तिगत धोखाधड़ी का नहीं, बल्कि आरक्षण व्यवस्था की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न खड़े करता है। यदि यह साबित होता है कि खेडकर ने गलत तरीके से आरक्षण का लाभ लिया, तो यह उन हजारों पात्र अभ्यर्थियों के साथ अन्याय है जो ईमानदारी से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।
यह मामला यह भी दर्शाता है कि कैसे प्रभावशाली पृष्ठभूमि वाले लोग व्यवस्था का दुरुपयोग कर सकते हैं और उस सामाजिक ताने-बाने को हानि पहुंचा सकते हैं, जिसे संविधान ने कमजोर वर्गों के लिए संरक्षित किया है।
क्या आगे खेडकर को राहत मिलेगी?
अभी तक पूजा खेडकर को केवल अंतरिम ज़मानत मिली है। मामले की अगली सुनवाई में अदालत यह देखेगी कि खेडकर ने जांच में कितना सहयोग किया और क्या उनके खिलाफ लगे आरोपों में दम है। यदि किसी भी स्तर पर उनके द्वारा शर्तों का उल्लंघन किया जाता है, तो उनकी ज़मानत तुरंत रद्द की जा सकती है।
पूजा खेडकर को मिली अंतरिम राहत ने जहां उनके खिलाफ जारी गिरफ्तारी की तलवार को कुछ समय के लिए टाल दिया है, वहीं यह मामला आने वाले समय में आरक्षण व्यवस्था की पारदर्शिता और उसकी निगरानी के मानकों को लेकर एक बड़ा उदाहरण बन सकता है।