रतन टाटा दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे, फिर भी वह कभी अरबपतियों की किसी सूची में नजर नहीं आए। उनके पास 30 से ज्यादा कंपनियां थीं जो छह महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में फैली थीं, इसके बावजूद वह एक सादगीपूर्ण जीवन जीते थे।
रतन नवल टाटा का बुधवार रात को 86 वर्ष की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया।
सरल और विनम्र व्यक्तित्व
रतन टाटा को उनकी शालीनता और ईमानदारी के लिए जाना जाता था। उनके सरल और विनम्र स्वभाव ने उन्हें उद्योग जगत में एक अलग पहचान दिलाई। वे एक कॉरपोरेट दिग्गज थे, जिनकी सफलता का आधार उनकी नैतिकता और व्यापारिक कुशलता थी।
शिक्षा और टाटा समूह में शुरुआती भूमिका
1962 में रतन टाटा ने कॉर्नेल विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से वास्तुकला में बी.एस. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वे पारिवारिक कंपनी, टाटा समूह में शामिल हो गए। शुरुआत में उन्होंने एक कंपनी में काम किया और फिर समूह के विभिन्न व्यवसायों में अनुभव प्राप्त किया।
1971 में, उन्हें ‘नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी’ (टाटा समूह की एक फर्म) का प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया।
टाटा समूह का नेतृत्व और वैश्विक विस्तार
एक दशक बाद, रतन टाटा टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बने। 1991 में उन्होंने अपने चाचा जेआरडी टाटा से टाटा समूह के चेयरमैन का पदभार संभाला। यह वह समय था जब भारत अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर खोल रहा था। टाटा समूह, जिसने 1868 में एक छोटी कपड़ा फर्म के रूप में शुरुआत की थी, जल्द ही एक “वैश्विक महाशक्ति” बन गया।
उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने नमक से लेकर इस्पात, कार से सॉफ्टवेयर, बिजली संयंत्र से एयरलाइन तक के विभिन्न क्षेत्रों में खुद को स्थापित किया।
प्रमुख अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण
रतन टाटा के नेतृत्व में समूह ने कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण किए। इनमें से कुछ प्रमुख अधिग्रहण थे:
- 2000 में लंदन स्थित टेटली टी को 43.13 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा।
- 2004 में दक्षिण कोरिया की देवू मोटर्स के ट्रक निर्माण परिचालन को 10.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा।
- 2007 में एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस समूह को 11 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा।
- 2008 में फोर्ड मोटर कंपनी से मशहूर ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा।
परोपकारी कार्यों में अग्रणी भूमिका
रतन टाटा केवल एक सफल व्यवसायी नहीं थे, बल्कि वे अपने परोपकारी कार्यों के लिए भी जाने जाते थे। उन्होंने भारत में स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। 1970 के दशक में, उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की, जो भारत के प्रमुख स्वास्थ्य संस्थानों में से एक बन गया।
उनकी परोपकार की सोच और व्यक्तिगत भागीदारी ने भारत में कई सामाजिक और स्वास्थ्यसेवा परियोजनाओं को मजबूती प्रदान की।
रतन टाटा का जीवन और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि असली सफलता केवल आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह समाज और मानवता की भलाई में निहित होती है। उनका सरल जीवन और उदार दिल हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहेगा। उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता, और वे हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।
रतन टाटा को उनकी निष्ठा, सादगी, और दूरदर्शी नेतृत्व के लिए याद किया जाएगा। उनका निधन न केवल उद्योग जगत बल्कि पूरे भारत के लिए एक बड़ी क्षति है।