BJP सांसद ने शेयर किया कलमा, बोले- पता नहीं कब जरूरत पड़ जाए

What is Kalma | बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया पर एक ऐसी पोस्ट साझा की है, जिसे लेकर बवाल मचना तय है। दुबे ने सोशल मीडिया पर कलमा शेयर किया है। साथ ही उन्होंने कहा है कि वह कलमा याद कर रहे हैं, पता नहीं इसकी कब जरूरत पड़ जाए।

Nishikant Dubey Tweet

BJP MP Nishikant Dubey shared the Kalma

बीजेपी सांसद ने सोशल साइट ट्विटर पर लिखा है कि वह इन दिनों कलमा सीख रहे हैं। उन्होंने लिखाः

“अशहदु अल्लाह इल्लाह इल्लल्लाहु वह दहु ला शरी-क लहू व अशदुहु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु ” आजकल कलमा सीख रहा हूँ,पता नहीं कब जरुरत पड़े।

दरअसल, पहलगाम आतंकी हमले के बाद से कलमा सुर्खियों में है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आतंकवादियों ने पहलगाम में पर्यटकों को निशाना बनाने से पहले उनसे उनका धर्म पूछा था। आतंकवादियों ने धर्म की पुष्टि करने के लिए पर्यटकों से कलमा सुनाने के लिए भी कहा था।

कलमा सुनाकर बचाई अपनी जान

असम विश्वविद्यालय में बंगाली विभाग के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य पहलगाम आतंकी हमले में बचने वाले शख्स हैं। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहाः

मैं अपने परिवार के साथ एक पेड़ के नीचे सो रहा था। तभी अचानक अपने आस-पास लोगों की फुसफुसाहट सुनी। लोग कलमा पढ़ रहे थे। स्वाभाविक रूप से मैंने भी इसे पढ़ना शुरू कर दिया। मेरे पास ही एक आतंकवादी खड़ा था। उसने मेरे पास लेटे व्यक्ति के सिर में गोली मार दी। इसके बाद आतंकवादी मेरी ओर बढ़ा। उसने मेरी ओर देखा और पूछा -क्या कर रहे हो? मैं और भी जोर से कलमा पढ़ने लगा। इसके बाद वह आतंकवादी वहां से चला गया।

पहलगाम आतंकी हमले में जान गंवाने वाले परिजनों ने भी इस बात का खुलासा किया है कि आतंकवादियों ने उन लोगों से धर्म पूछा था और पुष्टि करने के लिए कलमा पढ़ने के लिए भी कहा था।

कलमा क्या होता है? (What is Kalma in Islam)

कलमा (Kalma) अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है – “वचन”, “कथन” या “घोषणा”।
इस्लाम धर्म में “कलमा” को वह धार्मिक घोषणाएं माना जाता है जिनके माध्यम से कोई व्यक्ति अल्लाह की एकता, रसूल की पैग़म्बरी और इस्लामी विश्वासों को स्वीकार करता है।

इस्लाम में मुख्य 6 कलमे होते हैं:

इस्लाम में 6 मुख्य कलमे माने जाते हैं। ये कलमे कुरान और हदीस से लिए गए हैं और मुसलमान इनका पाठ करके अपने ईमान को दोहराते हैं।

1. कलमा-ए-तैय्यबा (Kalma-e-Tayyiba)

इस्लाम में प्रवेश करने वाला मूल वचन; सबसे महत्वपूर्ण कलमा।

“ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह”

अर्थ: “अल्लाह के सिवा कोई पूजनीय (इबादत के योग्य) नहीं है, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के रसूल हैं।”

2. कलमा-ए-शहादत (Kalma-e-Shahadat)

यह कलमा गवाही देने का वचन है।

“अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहू ला शरीक लह, व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुह”

अर्थः “मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई पूजनीय नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझीदार नहीं। और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (स.) उसके बंदे और रसूल हैं।”

3. कलमा-ए-तंज़ीह (Kalma-e-Tamjeed)

यह कलमा अल्लाह की महानता और पवित्रता का वर्णन करता है।

“सुब्हानल्लाह, वलहम्दु लिल्लाह, व ला इलाहा इल्लल्लाह, वल्लाहु अकबर, व ला हौला व ला क़ूव्वता इल्ला बिल्लाह”

अर्थः “अल्लाह पाक है, सारी तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं, अल्लाह के सिवा कोई पूजनीय नहीं, अल्लाह सबसे बड़ा है। और कोई ताक़त व शक्ति नहीं मगर अल्लाह के द्वारा।”

4. कलमा-ए-तौहीद (Kalma-e-Tauheed)

इसमें इस्लाम के एकेश्वरवाद सिद्धांत को दोहराया जाता है।

“ला इलाहा इल्लल्लाहु, वहदहू ला शरीक लह, लहुल मुल्कु, व लहुल हम्दु, युह्यी व युमीतु, वहुवा हय्युं ला यमूतु, अबदं अबदा, ज़ू अल-जलाली वल-इकराम, बियदिहिल खैरु, वहुवा आला कुल्लि शयइन क़दीर।”

अर्थः “अल्लाह के सिवा कोई पूजनीय नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझेदार नहीं। सारी बादशाहत और तारीफ़ उसी की है। वही जीवन देता है और वही मृत्यु देता है। वह सदा जीवित है और कभी नहीं मरेगा। वह सबसे ज़्यादा सम्मान और शक्ति वाला है, उसी के हाथ में सारी भलाई है और वह हर चीज़ पर सक्षम है।”

5. कलमा-ए-इस्तेग़फ़ार (Kalma-e-Astaghfar)

यह अल्लाह से क्षमा मांगने का वचन होता है।

“अस्तग़फिरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ली ज़म्बिं व अत्तूबु इलैह”

अर्थः “मैं अपने रब अल्लाह से अपने तमाम गुनाहों की माफ़ी मांगता हूँ और उसी की ओर तौबा करता हूँ।”

6. कलमा-ए-रद्द-ए-कुफ्र (Kalma-e-Radd-e-Kufr)

इसमें कुफ्र (अधर्म या ईश्वर से इनकार) से इनकार किया जाता है।

“अल्लाहुम्मा इन्नी आऊज़ु बिका मिं अन उशरिक बिका शैयअन व अना आ’लमु, व अस्तग़फिरुका लिमा ला आ’लमु, तुब्तु अन्हु व तबर्रअतु मिना’l-कुफ़्रि व शिर्कि वल-किज़्बि वल-ग़ीबति वल-बिदअति वन्नमीमति वल-फ़वाहिशि वल-बुह्तानि वल-मआसी कुल्लिहा, व असलम्तु व अक़ूलु ला इला’ह इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह।”

अर्थः “हे अल्लाह! मैं तुझसे पनाह मांगता हूँ इस बात से कि मैं तेरे साथ किसी को साझी करूँ जबकि मुझे मालूम हो, और माफ़ी मांगता हूँ उन चीज़ों के लिए जो मुझे नहीं मालूम। मैं कुफ्र, शिर्क, झूठ, ग़ीबत, बिदअत, चुग़ली, बेहयाई, बहुतान और सारे गुनाहों से तौबा करता हूँ और मैं इस्लाम लाया और कहता हूँ – ‘ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह।’”

कुल मिलाकर ‘कलमा’ वह वचन है जो इस्लामी आस्था का मूल आधार होता है, और इन्हें पढ़ना मुसलमानों की इबादत और जीवन का अहम हिस्सा है।

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