‘भारत कुमार’ नहीं रहे: मनोज कुमार का 87 साल की उम्र में निधन

हिंदी सिनेमा के ‘भारत कुमार’ अब हमारे बीच नहीं रहे। 87 वर्षीय दिग्गज अभिनेता, निर्देशक और देशभक्ति फिल्मों के पर्याय बन चुके मनोज कुमार (Manoj Kumar) ने शुक्रवार को मुंबई में अंतिम सांस ली।

सिर्फ अभिनेता नहीं, वो एक दौर थे। वो आवाज़ थे जो “मेरे देश की धरती” गाकर करोड़ों हिंदुस्तानियों के दिलों में बसा करते थे। उनकी फिल्में न सिर्फ सिनेमाघरों में चलती थीं, बल्कि जनभावनाओं को भी दिशा देती थीं।


हरिकिशन से भारत कुमार बनने तक की कहानी

24 जुलाई 1937 को अब्बोटाबाद (अब पाकिस्तान) में जन्मे हरिकिशन गिरी गोस्वामी, देश के बंटवारे के बाद दिल्ली आ गए। दिलीप कुमार से प्रभावित होकर अपना स्क्रीन नेम ‘मनोज कुमार’ चुना और फिर जो हुआ, वो इतिहास बन गया।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने फिल्मी दुनिया में कदम रखा, लेकिन शुरुआती कुछ फिल्में जैसे Fashion Brand और Sahara ज्यादा ध्यान नहीं खींच सकीं। पर 1962 में आई ‘हरियाली और रास्ता’ ने सब बदल दिया।


“वो कौन थे” जिन्होंने ‘वो कौन थी’ से खुद को अमर कर लिया

1964 में आई सुपरहिट फिल्म ‘वो कौन थी?’ ने उन्हें स्टार बना दिया। “लग जा गले” और “नैना बरसे” जैसे गीत आज भी दिलों को छूते हैं।

लेकिन ये तो बस शुरुआत थी…


जब ‘भारत कुमार’ की हुई एंट्री

1965 की ‘शहीद’, 1967 की ‘उपकार’ और 1970 की ‘पूरब और पश्चिम’ — ये सिर्फ फिल्में नहीं थीं, ये एक सोच थी। एक सिनेमा स्कूल थी।

‘उपकार’ तो पीएम लाल बहादुर शास्त्री की प्रेरणा पर बनी थी, और फिल्म में “मेरे देश की धरती सोना उगले” जैसे गानों ने इसे अमर बना दिया।

उसी फिल्म से मनोज कुमार को मिला नया नाम — ‘भारत कुमार’।


ब्लॉकबस्टर मशीन: 70s में आया हिट्स का तूफान

  • रोटी कपड़ा और मकान (1974) – सामाजिक मुद्दों की सशक्त प्रस्तुति
  • संत (1975) – धार्मिक बनाम व्यावहारिक सोच की भिड़ंत
  • दस नंबर (1976) – मसालेदार एंटरटेनमेंट के साथ संदेश

और फिर आया 1981 का ‘क्रांति’ — एक ऐसी फिल्म जो सिर्फ हिट नहीं हुई, बल्कि आंदोलन बन गई। दिल्ली से बनारस तक ‘क्रांति जैकेट्स’ और टी-शर्ट्स बिकने लगीं।


…और फिर धीरे-धीरे पर्दे से विदाई

80 के दशक के अंत तक उनका सिनेमा कमजोर पड़ने लगा। ‘क्लर्क’, ‘देशवासी’ जैसी फिल्में दर्शकों को जोड़ नहीं पाईं। आखिरी बार 1995 में ‘मैदान-ए-जंग’ में नज़र आए।

1999 में अपने बेटे कुणाल गोस्वामी को लॉन्च किया ‘जय हिंद’ से, लेकिन बॉक्स ऑफिस ने इसे नकार दिया।

उसी साल उन्हें मिला Filmfare Lifetime Achievement Award — एक पूरे युग को सम्मानित किया गया।


राजनीति में भी आज़माया हाथ

1999 के बाद एक्टिंग से दूरी बनाकर उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा। हालांकि सक्रिय राजनीति में कभी पूरी तरह नहीं उतरे, लेकिन विचारधारा से हमेशा जुड़े रहे।


🏆 सम्मानों की लंबी फेहरिस्त

  • 🏅 दादा साहब फाल्के अवॉर्ड (2015)
  • 🎖️ पद्म श्री (1992)
  • 🏆 7 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड विजेता
  • 🏅 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – ‘उपकार’ के लिए

Manoj Kumar का सिनेमा: वो स्क्रीनप्ले, जो दिलों पर लिखा गया

मनोज कुमार की फिल्मों का स्क्रिप्ट फॉर्मेट वही था जो आज भी कई निर्देशकों का सपना है — भावना, विचार और व्यावसायिक सफलता का संतुलन।

वो एक्टिंग करते नहीं थे, वो जीते थे। उनके संवाद, उनकी चुप्पी और उनकी आँखें — सबकुछ बोलता था।


फिल्म इंडस्ट्री की श्रद्धांजलि

अमिताभ बच्चन से लेकर अक्षय कुमार तक, सिनेमा जगत ने मनोज कुमार को श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने भी सोशल मीडिया के ज़रिए उनकी सेवाओं को याद किया।

“उन्होंने हमें सिखाया कि देशभक्ति सिर्फ नारे से नहीं, कर्म से आती है।” – एक्टर पंकज त्रिपाठी


🌺 एक युग का अंत… लेकिन विरासत अमर

मनोज कुमार का जाना सिर्फ एक अभिनेता का जाना नहीं है — ये उस युग की विदाई है, जब फिल्मों के पोस्टर पर ‘देश’ लिखा होता था।

आज भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जब भी कोई “मेरे देश की धरती…” गुनगुनाएगा, वहां कहीं मनोज कुमार मुस्कुरा रहे होंगे।


शत् शत् नमन भारत कुमार 🙏

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