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शंकराचार्य का मोदी सरकार को 33 दिन का अल्टीमेटम, क्या है मांग?

Swami Avimukteshwaranand Saraswati, the Shankaracharya of the Jyotish Peeth in Uttarakhand, gave the Centre 33 days to decide on banning cow slaughter in the country and declaring cow as "Rashtra Mata".

ज्योतिष पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने केंद्र की मोदी सरकार से गाय को ‘राष्ट्रमाता’ का दर्जा देने और गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग तेज कर दी है। उन्होंने सरकार को इस विषय पर निर्णय लेने के लिए 33 दिन का समय दिया है।

शंकराचार्य शिविर में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “हम पिछले डेढ़ साल से गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने की मांग कर रहे हैं। अब हमने निर्णय लिया है कि माघी पूर्णिमा के अगले दिन (बृहस्पतिवार) से हम 33 दिनों की यात्रा निकालेंगे, जो 17 मार्च को दिल्ली पहुंचकर समाप्त होगी। इन 33 दिनों में यदि सरकार कोई ठोस निर्णय नहीं लेती, तो 17 मार्च को शाम 5 बजे के बाद हम बड़ा कदम उठाएंगे।”

मोदी सरकार से मांग

शंकराचार्य ने कहा कि गाय सनातन संस्कृति का केंद्र है और वेदों, पुराणों एवं धर्मशास्त्रों में इसे अत्यंत पूजनीय माना गया है। उन्होंने कहा, “गाय के शरीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास बताया गया है। यही कारण है कि हम चाहते हैं कि गाय को केवल एक पशु के रूप में नहीं, बल्कि ‘राष्ट्रमाता’ के रूप में सम्मान मिले।”

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नेतृत्व में निकाली जाने वाली यह यात्रा देशभर के विभिन्न धार्मिक स्थलों से होकर गुजरेगी, और इसे संत समाज, गौ-सेवी संगठनों और विभिन्न हिंदू संगठनों का समर्थन मिल सकता है।

गौ-संरक्षण पर सरकार का दृष्टिकोण

वर्तमान में केंद्र और कई राज्य सरकारें गौ-संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाएं चला रही हैं। कुछ राज्यों में गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध है, लेकिन कई जगह अब भी यह जारी है।

उत्तर प्रदेश सरकार स्कूलों के पाठ्यक्रम में गाय से जुड़ी जानकारियों को शामिल करने की योजना बना रही है, लेकिन शंकराचार्य ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा, “यदि वहां भी गाय को सिर्फ एक पशु के रूप में पढ़ाया जाएगा, तो इसका क्या लाभ?”

पहले भी उठी है गाय को ‘राष्ट्रमाता’ घोषित करने की मांग

गौरतलब है कि गाय को ‘राष्ट्रमाता’ का दर्जा देने की मांग नई नहीं है। इससे पहले भी कई संत, संगठन और राजनेता इस मांग को उठा चुके हैं। 2017 में राजस्थान हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने गाय को ‘राष्ट्रीय पशु’ घोषित करने की सिफारिश की थी। इसके बाद विभिन्न हिंदू संगठनों और संत समाज ने इसे ‘राष्ट्रमाता’ का दर्जा देने की मांग उठाई थी।

2021 में भी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष स्वामी नरेंद्र गिरी ने गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने की मांग की थी। 2018 में उत्तराखंड सरकार ने गौ-रक्षा के लिए ‘गौ-आयुष विश्वविद्यालय’ खोलने की घोषणा की थी, और 2019 में मध्य प्रदेश सरकार ने गौ-संवर्धन बोर्ड का गठन किया था।

क्या होगी आगे की रणनीति?

शंकराचार्य ने स्पष्ट किया कि यदि 33 दिनों के भीतर केंद्र सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाती, तो 17 मार्च को दिल्ली में संत समाज और गौ-भक्त मिलकर बड़े निर्णय लेंगे। उन्होंने कहा, “हमने इस विषय पर सरकार को पूरा समय दिया है, अब संत समाज और हिंदू जनमानस को निर्णायक भूमिका निभानी होगी।”

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाती है और 33 दिनों के भीतर कोई आधिकारिक घोषणा होती है या नहीं। वहीं, हिंदू संगठनों और संत समाज के इस आंदोलन का कितना व्यापक समर्थन मिलता है, यह भी आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।

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